Saturday, February 13, 2010

ठाकरे को ठेंगा

कुछ सिरफिरे बनाम देश की लड़ाई का प्रथम चक्र कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी जीत चुके हैं। अपनी मुंबई यात्रा के दौरान लोकल ट्रेनों में सफर करके श्री गांधी ने शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के उस अहंकार को नष्ट कर दिया है कि उनकी अनुमति के बगैर मुंबई की सड़कों पर अमन कायम नहीं रह सकता है। उन्होंने न सिर्फ शेर को उसकी मांद में पछाड़ा बल्कि आम जनता में भी वह विश्वास पैदा करने की कोशिश की कि मुंबई सिर्फ मराठियों की नहीं बल्कि पूरे देशवासियों की है।कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की मुंबई यात्रा ने कई मिथ तोड़ दिये हैं। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने देशवासियों को यह विश्वास दिलाने में सफलता प्राप्त की कि कुछ सिरफिरे व सांप्रदायिक लोग इस देश की एकता व अखंडता को नष्ट नहीं कर सकते।शिव सेना की धमकियों के बावजूद जिस बिंदास तरीके से राहुल मुंबई की सड़कों पर घूमे, उससे उन्होंने अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की याद ताजा कर दी। याद रहे कि देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखने में ही उनके पूर्वजों ने अपनी आहुति दी थी।राहुल गांधी ने अपने पूर्वजों के मान सम्मान को आगे बढ़ाते हुए जान की परवाह किये बिना जिस बेखौफ तरीके से शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे की धमकियों का जवाब दिया उससे जाहिर है कि वह अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं। जिस बाल ठाकरे की इंकार पर मुंबई की नब्ज थम जाती थी, वही मुंबई में बैठे-बैठे राहुल गांधी की यात्रा का नजारा देखते रहे। कभी शेर की तरह दहाड़ने वाले ठाकरे राहुल गांधी के विरोध में अपने उन शिव सैनिकों को भी नहीं भेज पाये जो कभी उनके एक इशारे पर मुंबई में आग लगा देते थे। राहुल गांधी जान बूझ कर उन्हीं इलाकों में सैर करते रहे, जिसे शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे व उनके भतीजे तथा मनसे प्रमुख राज ठाकरे का गढ़ माना जाता है। उन्होंने उन्हीं इलाकों में लोकल ट्रेनों में सफर किया। वहां के लोगों का हाल चाल भी राहुल ने पूछा।राहुल की मुंबई यात्रा से पूर्व इसे धर्म, संप्रदाय एवं क्षेत्रवाद के नाम पर एक बार फिर बांटने की साजिश प्रारंभ हो गयी थी। मुंबई को सिर्फ मराठियों का बताया जाने लगा था। यहां तक कि महाराष्ट्र की कांग्रेस व एनसीपी गठबंधन की सरकार ने भी शिव सेना प्रमुख और मनसे प्रमुख के पद चिन्हों पर चलते हुए यह फैसला कर डाला था कि महाराष्ट्र में वहीं टैक्सी चलायेगा जो मराठी जानता हो और पिछले १५ वर्ष से मुंबई का निवासी हो। जाहिर है यह फैसला उत्तर भारतीयों के खिलाफ था। मुंबई सरकार के खिलाफ यह फैसला उत्तर भारतीयों को नाराज करने के लिए किया गया था। हैरानी की बात यह थी कि यह फैसला उस सरकार द्वारा किया था जिसने हाल ही में सम्पन्न विधान सभा चुनाव में उत्तर भारतीयों को भरपूर सुरक्षा प्रदान करने का आश्र्वासन दिया।महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का असर बिहार विधानसभा के चुनाव में दिखाई पड़ने के आसार थे। कांग्रेस महासचिव ने इसका अंदाजा लिया था। उन्होंने बिहार यात्रा के दौरान ही यह घोषणा की थी कि मुंबई पूरे देशवासियों की है न कि मराठियों की। उनके इस बयान से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाव्हाण को करारा झटका लगा। उन्होंने अपने फैसले से पलटी मरते हुए यह कहा कि महाराष्ट्र में टैक्सी ड्राइवरों के लिए स्थानीय भाषा की जानकारी होना आवश्यक है। लेकिन कांग्रेस महासचिव के दिल में तो कुछ और ही था। इस घोषणा के बाद ही शिव सेना और मनसे कार्यकर्ताओं ने यह चुनौती दे दी कि वह राहुल गांधी को मुंबई में घुसने नहीं देंगे और उन्हें काले झंडे दिखायेंगे। दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी राहुल गांधी इन धमकियों से न डरे और न ही झुके। वह पूरे दमखम के साथ मुंबई की सड़कों पर घूमे। वे खासकर उन्हीं इलाकों में गये जिन्हें शिवसेना और मनसे का गढ़ माना जाता है। सुरक्षा एजेंसियों की चेतावनी के बाद भी उन्होंने लोकल ट्रेन से सफर किया। इस यात्रा ने उत्तर भारतीयों को जहां सुरक्षा का अहसास कराया, वहीं समूचे देश को भी यह विश्वास दिलाया कि कुछ उपद्रवी और असामाजिक तत्व देश की सुरक्षा, एकता एवं अखंडता के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।राहुल की यात्रा ने महाराष्ट्र सरकार को भी यह संदेश दे दिया है कि कांग्रेस सरकार सिर्फ मराठियों की नहीं बल्कि महाराष्ट्र में रहने वाले सभी धर्मों, जातियों एवं सत्ता के लोगों की है। इसलिए सरकार को सिर्फ मराठियों की नहीं बल्कि सभी वर्गों के हितों की रक्षा करनी चाहिए। राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को भी संकेत दिया कि वह दोहरी नीति न लागू करें बल्कि समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा के लिए कार्य करें।उनकी इस यात्रा ने शिवसेना का भ्रम तोड़ दिया कि महाराष्ट्र में वह सर्वशक्तिमान है। उन्होंने बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को उनके ही इलाके में औकात दिखा दी। उन्होंने मुंबई में आतंक का पर्याय बन चुके ठाकरे परिवार और उनके समर्थकों को बता दिया कि हुकूमत और राजनीतिक इच्छाशक्ति की मजबूती के सामने बंदरघुड़की की कोई जगह नहीं है। यह ठाकरे की राजनीति के मुंह पर बड़ा तमाचा है।

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