Friday, February 12, 2010

देसी बैंगन की जीत

पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश ने जब बी टी बैंगन को रोकने का फैसला सुनाया तो देश में पिछले दो वर्षों से चल रहे जीएम फूड विरोधी आंदोलन में शामिल लोगों के चेहरों पर मुस्कान थी। देश भर में फैले इस आंदोलन ने हालिया दिनों में जन दबाव बनाकर सरकार से सार्थक निर्णय पाने में नयी मिसाल कायम की। बीटी बैंगन पर रोक के फैसले ने न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में जी एम फूड विरोधी आंदोलनकारियों को बल दिया है।पर्यावरण मंत्री ने अपने नोट में लिखा है कि 'इसे देश की बायो तकनीकी रिसर्च में रोड़ा न समझा जाये पर जब तक एक स्वतंत्र एजेंसी ऐसी फसलों के प्रभावों पर संस्तुतिपरक रिपोर्ट नहीं दे देती तब तक इन फसलों पर रोक जारी रहनी चाहिए।'भारत सरकार द्वारा गठित जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) ने अक्टूबर २००९ में बीटी बैंगन को पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित बताते हुए अपनी स्वीकृति दे दी थी। इसके बाद से ही विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। इसे देखते हुए सरकार ने देश भर में जन सुनवाई करने का निर्णय किया। आठ दौर की जन सुनवाई की अंतिम बैठक छह फरवरी को समाप्त हो गयी। बीटी बैंगन को महिको ने अमेरिकी कंपनी मोनसेंटो के साथ मिलकर विकसित किया। इसमें मिट्टी में पाया जाने वाला क्राई१ एसी नामक जीन डाला गया है। इससे निकलने वाले जहरीले प्रोटीन को खाने से बैंगन को नुकसान पहुंचाने वाले फूट एंड शूट बोरर नामक कीड़े मर जाते हैं। दरअसल बीटी बैंगन को लेकर आशंकाएं कम नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित दो सदस्यीय पैनल के सदस्य डा. पुष्प भार्गव के अनुसार किसी भी जीएम बीज को अनुमति देने से पहले कम से कम ३० महत्वपूर्ण परीक्षण अनिवार्य है। इसके विपरीत जीईएसी केवल तीन परीक्षण करती है। कई महत्वपूर्ण प्रयोग नहीं किए जाते। जीईएसी कंपनियों द्वारा दिए गए सैंपल की जांच करती है जबकि नियमतः उसे खुद सैंपल एकत्र करने चाहिए। विश्व के १८० देशों में जीएम खेती या उत्पादों पर पूरी तरह रोक लगी हुई है। दुनिया की ७५ प्रतिशत जीएम खेती चार देशों (अमेरिका,कनाडा, ब्राजील, व अर्जेटीना) में होती है। यहां भी सिर्फ चार फसलें ( कपास, सोयाबीन, मक्का, कैनोला) में ही जीन संवर्द्धन की छूट है। इनमें से अधिकांश का प्रयोग जैव ईंधन के लिए किया जाता है। बीटी बैंगन की रोग प्रतिरोधकता और अधिक उत्पादकता के दावे को भी कठघरे में खड़ा किया जा सकता है।अब तक के अनुभवों से यही प्रमाणित होता है कि अन्य परिस्थितियों के अनुकूल रहने पर जीएम बीज शुरू में अच्छी पैदावार देते हैं लेकिन धीरे धीरे उत्पादकता में कमी आने लगती है। तीन-चार वर्ष में ही खेत में ऐसे कीट पैदा हो जाते हैं जिनके लिए अधिक शक्तिशाली रसायनों की जरूरत पड़ती है। उदाहरण के लिए बीटी कपास में बालवर्म के विरुद्ध प्रतिरोधकता मौजूद थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कई अन्य कीटों (बालवीवल, आर्मीबर्म तथा ह्वाइट फ्लाई) ने कपास की फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिय। अब तो बालवर्म में भी प्रतिरोधकता उत्पन्न हो रही है। कड़वा सच यह है कि जीएम तकनीक के बहाने बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूरे विश्व की खाद्य श्रृंखला पर कब्जा जमाने की मुहिम में जुट गई हैं। आहार का आधार खेती है और खेती का आधार बीज। एक बार बीजों के मामले में पराधीन हो जाने पर किसी भी देश की राजनीतिक, आर्थिक स्वतंत्रता व खाद्य सुरक्षा सदा के लिए खत्म हो जाती है। जीएम फसलों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के अभी तक जो अध्ययन हुए हैं उनमें सिद्ध हो चुका है कि बीटी बैंगन खाने के बाद गाय, बकरी, खरगोश, मछलियां और चूहे आदि जीवों को गंभीर बीमारियों ने घेर लिया। अधिकतर जीवों के आंतरिक अंगों में विकृतियां आईं। महिको ने बीटी बैंगन के गुणों को तो बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया लेकिन संभावित दुष्परिणामों को जानबूझकर छिपाया है।अमेरिकन एकेडमी आफ एनवायर्नमेंट मेडिसिन (एएइएस) का कहना है कि जीएम खाद्य स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। विषाक्तता, एलर्जी और प्रतिरक्षण, प्रजनन, चय-अपचय, पाचन क्रियाओं पर तथा शरीर और आनुवंशिक मामलों में इन बीजों से उगी फसलें उनमें बनी खाने-पाने की चीजें भयानक ही होंगी।बीटी बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति देने के मामले में चल रही बहस के बीच देश के कई राज्यों ने इसका विरोध किया। पंजाब के वन व वन्य जीव, उच्च चिकित्सा शिक्षा मंत्री तीक्ष्ण सूद ने कहा कि बीटी बैंगन के व्यावसायिक उत्पादन पंजाब के हित में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि बीटी बैंगन मामले को लेकर पंजाब सरकार संजीदा है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि केंद्र बीटी बैंगन के मामले में बहुराष्ट्रीय कंपनी मोनसांटो के दबाव में इसे राज्यों में लागू करने के लिए विवश कर रही है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल व मध्य प्रदेश जैसे राज्य बीटी बैंगन के विरोध में है। वहीं गुजरात व महाराष्ट्र सरकार ने भी इस पर विरोध करने के लिए समय की मांग की है। बीटी बैंगन के विरोध में ३० जनवरी को केरल से लेकर दिल्ली और पश्चिम बंगाल से लेकर गुजरात तक राष्ट्रीय उपवास दिवस का आयोजन किया गया। इस देशव्यापी उपवास का आयोजन कई गैर सरकारी संगठनों व किसान संगठनों की तरफ से किया गया।मध्य प्रदेश सरकार ने इस पर का कड़ा ऐतराज जताते हुए केंद्र सरकार से इसे बाजार में नहीं उतारने की मांग की है। इससे पहले केरल, कर्नाटक व उड़ीसा की सरकार भी बीटी बैंगन पर विरोध जता चुकी है।

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