Thursday, February 25, 2010

महान हैं सचिन

२४ फरवरी को सचिन तेंदुलकर ने ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम में इतिहास रच दिया। उन्होंने अपने करियर की वह सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल की जिसको पाने को दुनिया के कुछ महान खिलाड़ी ही सोंच सकते हैं, पर हमारे सचिन तो वाकई महान हैं। शायद तभी उन्हें हमारे देश के लोग क्रिकेट का भगवान कहते हैं। कल जब सचिन ने मैच के बाद टीवी पर कहा, मैं यह सेंचुरी भारत के लोगों को समर्पित करता हूं तो अपने आप ही आंखें भींग गईं। वजह यह रही कि वे दिन याद आ गए जब वह लगातार असफल हो रहे थे और मीडिया व जनता का एक वर्ग उन्हें रिटायर होने की सलाह दे रहा था। सचिन के स्टेटमेंट पर ध्यान दें ...हर उतार चढ़ाव में मेरे साथ रहे प्रशंसक, जाहिर है कि गर्दिश के वे दिन उन्हें भी याद आते होंगे और उन दिनों वह बहुत उदास भी रहे होंगे। लेकिन कमाल की बात यह है कि उन्होंने कभी भी अपने आलोचकों को पलट कर जवाब नहीं दिया। उनसे बहस नहीं की। बस यही कहते रहे कि उनकी बातों का जवाब मेरा बैट देगा और उन्होंने उसका जवाब हमेशा से ही अपने बैट से दिया। उनके विपरीत हमारे राजनीतिज्ञों को देखिए। हर समय बस आरोप प्रत्यारोप में लगे रहते हैं। एक बाल ठाकरे हैं जिन्होंने सचिन जैसे महान खिलाड़ी को भी नहीं बख्शा था। ये लोग सचिन से सबक ले सकते हैं।अगर सबक लेना हो तो सचिन से हम कुछ सबक तो ले ही सकते हैं, खास कर ऐसे लोग जो क्रिकेट खेलना नहीं जानते, सिर्फ देखना जानते हैं। पर कुछ भी बोलने से न सोचते हैं और न कभी भी नहीं चूकते। ऐसे लोगों को कुछ भी बोलने से पहले अपन आप को और अपनी हकीकत देख लेनी चाहिए। सचिन के इस शतक के बाद पूर्व संपादक प्रभाष जोशी की याद भी आई। आज से साढ़े तीन महीने पहले की बात है। ऐसा ही एक मैच था जिसमें सचिन ने बहुत ही बढ़िया पारी खेली थी लेकिन टीम को जीत दिलाने से पहले ही आउट हो गए थे। जोशी जी उस दिन इतने दुखी हुए कि उसी रात उनका हार्ट अटैक हो गया। कल अगर जोशी जी यह मैच देख रहे होते तो कितना खुश होते। सबसे ज्यादा रन, सबसे ज्यादा शतक, सबसे ज्यादा अर्ध शतक। इंटरनैशनल क्रिकेट के जिन दो रूपों में सचिन हिस्सा लेते हैं, उन दोनों में ही वह न सिर्फ शीर्ष पर हैं, बल्कि काफी दूर तक उनके पीछे कोई नहीं है। दुनिया में पहला वनडे इंटरनैशनल मैच ५ जनवरी १९७१ को आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में खेला गया था। तब से अब तक गुजरे चालीस सालों में आठ गेंदों के चालीस चालीस ओवरों से लेकर छह गेंदों के साठ-साठ ओवरों तक और अंत में मौजूदा फार्मेट तक लगभग दो हजार वनडे इंटरनैशनल खेले जा चुके हैं, लेकिन दोहरा शतक इनमें आज तक एक भी नहीं बन पाया है। ठीक बराबर १९४ रनों के साथ इसके सबसे ज्यादा करीब दो खिलाड़ी पाकिस्तान के सईद अनवर (भारत के खिलाफ) और जिंबाब्वे के चार्ल्स कोवेंट्री (केन्या के खिलाफ) ही पहुंच पाए हैं। कितना अजीब है कि अभी तक यह करिश्मा अपने जीवन के छत्तीस बसंत देख चुके सचिन तेंडुलकर के ही लिए छूटा हुआ था। सचिन ने वनडे इंटरनैशनल का एकमात्र डबल सेंचुरी सचिन ने केन्या, बांग्लादेश, जिंबाब्वे या बरमूडा के खिलाफ नहीं, दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बनाई है, जिसकी गेंदबाजी इस समय दुनिया में सबसे अच्छी मानी जा रही है। २५ चौकों और तीन छक्कों से बड़ी बात तो इस उम्र में हिरन की चपलता के साथ बटोरे गए उनके सिंगल्स हैं, जिनके बगैर इस एकदिवसीय क्रिकेट में इतनी बड़ी पारी खेलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जो लोग ऐसा मानते रहे हैं कि सचिन में ज्यादा बड़ी पारियां खेलने का माद्दा नहीं है, या यह कि उन्हें अब अपनी उम्र के हिसाब से ही खेलना चाहिए, उन्हें अब शायद अपनी समझ पर पुनर्विचार करना पड़े।

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