Friday, August 26, 2011

राहुल की खामोशी का क्या मतलब

भ्रष्टाचार जैसे अति-महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश की निगाहें दिल्ली के रामलीला मैदान पर जमीं हुई हैं. जनता में पिछले चौसठ सालों का जमा गुस्सा राष्‍ट्रीय राजमार्गों पर 'जन-लोकपाल' के मांग के रूप में फूट पड़ा है. राजनितिक दलों को सांप सूंघ गया है. कुछ सामने आ भी रहे हैं तो बाद में अपने कथन को व्यक्तिगत विचार का नाम देकर 'निकास-दाँव' मार रहे हैं. देश में जबरदस्त गतिरोध बना हुआ है. कथित 'रिमोट' सोनिया जी अपनी 'तथाकथित' बीमारी के चलते विदेश में हैं.क्या पता, सोनिया ने ... अपने 'विदेशी-मूल'  को सुरक्षित बचा जाने के लिए यह कदम उठाया हो,  ताजा-ताजा किसान नेता बने राहुल गाँधी इस समय कहाँ हैं? बिना कलफ किया कुरता पहने, हल्की दाढ़ी बढ़ाए, गाँव के झुग्गी-झोपड़ियों और 'बसपा पीड़ित किसानों'  के लिए दिल में दर्द लिए, राजनीतिज्ञ, फिलवक्त कहाँ मशरूफ हैं? अप्रैल माह में ही भ्रष्टाचार और काले-धन मुद्दे पर टीम-अन्ना और बाबा रामदेव द्वारा हमला बोले जाने का आगाज़ हो गया था, लेकिन उस समय राहुल मिशन-यूपी-२०१२ की कामयाबी के लिए किसानों के साथ पंचायत करने में मशगूल थे. कुछ चाटुकार कांग्रेसियों ने राहुल गाँधी को 'भविष्य का प्रधानमंत्री' मान लिया है. तो क्या, भावी प्रधानमंत्री को ऐसे संक्रमण काल में भी चुप्पी साधे रहना चाहिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस के रणनीतिकार, राहुल गाँधी जैसे तुरुप के पत्ते को अभी मैदान में उतरना ही नहीं चाहते? ... फिर युवराज की खामोशी का क्या मतलब निकाला जाय? जो भी हो,लेकिन इस चुप्पी में कोई न कोई रहस्य जरुर हैं.

Wednesday, August 17, 2011

सरकार अपना सब ·कुछ गंवा चुकी है

       भ्रष्टाचार के  खिलाफ अन्ना हजारे के  अभियान की  आवाज को  दबाने के  लिए सत्ताधारी यूपीए की कार्रवाई से उसके थिंक  टैंक· का मानसिक दिवालियापन सामने आ गया है। मुझे पता नहीं है की सरकार में पर्दे के  पीछे क्या चल रहा है। ले·कीन दिल्ली और देश के  दूसरे हिस्सों में अन्ना के  समर्थन को जिस अभूतपूर्व तरीके  से धावा बोला गया उससे साफ है ·की सरकार अपना सब ·कुछ गंवा चुकी है। अब काग्रेस की इस ·केद्र सरकार पर भरोसा नहीं कीकीया जा स·ता। जब सर·ार ने यह वादा ·िया था ·ि वह सिविल सोसायटी ·े सदस्यों ·े साथ मिल·र मजबूत लो·पाल बिल पर ·ाम ·रेगी तब क्यों? क्यों·ि इस सर·ार में बहुत से ऐसे लोग हैं जो बहुत ज्यादा होशियार बनते हैं मसलन ·पिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, मनीष तिवारी, अंबि·ा सोनी, प्रणव मुखर्जी जैसे लोग। इन्हें मुगालता हो गया है ·ि देश यही चला रहे हैं। जब·ि इन्हें पता नहीं ·ि देश तो चलता रहता है लोग बदलते रहते हैं। बस बेचने वाले दलालों से सावधान रहना चाहिए। सबसे बड़ी बात युवाओं ·ी बात ·रने वाले राहुल गांधी ने इस पूरे प्र·रण में अपना मुंह भी नहीं दिखाया। पिछले दो दिनों में सर·ार ने जिस तरह से ·ाम ·िया है, उससे साफ झल·ता है ·ि सर·ार में हताशा बढ़ रही है। सर·ार ·े प्रति निराशाजन· चिंता और अधि· बढ़ गई क्यों·ि दो दिन पहले ही ·ांग्रेस पार्टी ने अन्ना पर पूरी तरह से बेतु·ा पर्नसल अटै· ·िया था। उन·े वा·पटु प्रवक्ता (जिन्हें ·ैबिनेट फेरबदल में मंत्री बनाए जाने ·ी ·वायद थी ले·िन पिछले ·ुछ ही महीनों ·े भीतर हुए फेरबदल में दोनों बार वे नहीं बन स·े) ·ो अन्ना ·ो ·रप्ट बताने ·े लिए मजबूरी में 8 साल पुरानी रिपोर्ट नि·लवानी पड़ी। ये पूरी ·ी पूरी चाल खुद सर·ार ·े ही मत्थे पड़ गई और इस बात ·ा अहसास सर·ार ·ो तब हुआ जब हर ·ोई ·ांग्रेस ·े इस वक्त्व्य ·े खिलाफ जली-·टी सुनाने ·े मूड में आ गया। यहां त· ·ि बड़बोले दिग्विजय सिंह ने भी ·हा ·ि अन्ना ·े खिलाफ ·ुछ है ही नहीं। ले·िन, हमेशा ·ी तरह, उन्होंने खुद ही अपनी बात ·ाट डाली और ·हा ·ि अरविन्द ·ेजरीवाल ·रप्ट हैं। यह वह समय है जब सर·ार ·ो यह पता चल चु·ा है ·ि या तो उस·े विभागों ·ी गंदी चालबाजियों ·े दिन पूरे हो गए हैं या फिर उन्हें अपनी रणनीति बदल लेने ·ी जरूरत है। जब ·रप्शन ·े ·ैंसर ·ो नियंत्रित ·रने ·े लिए आंदोलन चल रहा है, तो इसे राष्ट्र ·े निर्माण ·े लिए प्रयोग ·िया जा स·ता है।