Friday, February 12, 2010
नफरत की राजनीति
नफरत की राजनीति करने वाले चंद लोगों के कारण दुनिया में मुंबई की छवि ऐसे शहर के रूप में बन चुकी है जो बेहद असुरक्षित है। पिछले साल पांच दिनों तक मुंबई आंतकियों के कब्जे में रही। अक्सर यह शहर शिवसेना और मनसे की अंधेरगर्दी के कारण पटरी से उतर जाता है। लोग मजबूरी में यह स्वीकार करते हैं कि जीवन चंद हाथों की बपौती है। कभी शिवसेना कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी तो कभी अपनी सहयोगी भाजपा को धमकाती है। कभी वह मुकेश अंबानी को धंधा करने को कहती है। शाहरुख को धमकाते हुए पाकिस्तानी खिलाड़ियों से दूर रहने को कहती है। कभी अमिताभ बच्चन पर निशाना साधती नजर आती है। हालांकि मराठियों की हिमायत करके उत्तर भारतीयों को निशाने पर लेने वाली शिवसेना को अब हर मोर्चे पर करारा जवाब मिल रहा है। शाहरुख खान ने जवाब दिया। सचिन जवाब दे चुके हैं। बाल ठाकरे की क्षेत्रीयता से भरपूर मानसिकता को बार-बार ठोकर लग रही है। ठाकरे इतने बदहवास हैं कि संभल नहीं पा रहे। सचिन तेंडुलकर ने जब कहा मुंबई सबकी है तो ठाकरे ने उन्हीं से पंगा ले लिया।उन्हें मुंह की खानी पड़ी पर रवैया नहीं बदला। मुकेश अंबानी ने भी खरी खरी सुना दी लेकिन ठाकरे बेअसर। आखिरी वार राहुल गांधी ने किया। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत खुद महाराष्ट्र के हैं पर उन्होंने कह दिया कि मुंबई सभी भारतीयों की है। बीजेपी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने संघ का इशारा समझ कर अपना रवैया साफ कर दिया कि भाजपा इस मुद्दे पर शिव सेना का साथ नहीं दे सकती। उन्होंने कहा कि मुंबई पूरे देश की है और लोग पूरे देश में कहीं भी नौकरी के लिए आ-जा सकते हैं। संघ के पूर्व प्रवक्ता राम माधव ने एक कदम आगे निकलते हुए यह कहा कि संघ के स्वयंसेवक मुंबई में उत्तर भारतीयों की रक्षा करेंगे। इस पर बाल ठाकरे दहाड़ उठे। बाल ठाकरे की लड़ाई अब संघ परिवार से शुरू हो गयी है। संघ के जवाब में उद्धव ठाकरे ने मोर्चा संभाला। उन्होंने संघ को खरी-खरी सुनाते हुए कहा कि हमें देशभक्ति और एकता का पाठ न पढ़ाए। जब १९९२ में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए तो हमने हिंदुओं की रक्षा की। तब कहां था संघ परिवार। भाजपा महासचिव विनय कटियार और पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने शिवसेना पर हमला बोलते हुए कहा कि मुंबई ठाकरे परिवार की जागीर नहीं। पिछले पच्चीस वर्षों में सीटों के लेन देन पर छोटी-मोटी तनातनी को छोड़ कर भाजपा और शिवसेना के बीच कभी कोई गंभीर टकराव नहीं देखा गया। आरएसएस से भी शिवसेना की कभी कोई तकरार नहीं हुई। आम भारतीय की नजर में पिछले तीन दशकों से शिवसेना की छवि संघ के ही किसी परिवारी संगठन जैसी रही है। ऐसे में शिवसेना नेतृत्व का अचानक आरएसएस के खिलाफ उग्र बयान जारी कर देना चकित करने वाली बात है। इस बीच संघ के सुर में सुर मिलाते हुए भाजपा ने भी साफ कर दिया कि उसे अब शिवसेना से अपने संबधों पर पुनर्र्विचार करना पड़ेगा। सवाल यह उठता है कि यह दरार सचमुच है या केवल लकीर खींच कर जनता को भरमाने की कोशिश है। इसका पता आने वाले समय में लगेगा। शिवसेना और उसकी मानस संतान मनसे ने अपनी क्षेत्रीय राजनीति के चलते मुद्दा यह बना दिया है कि मुंबई किसकी है? सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जितने जरूरी प्रश्न हैं, वे सब इस एक सवाल के नीचे दफन कर दिए गए हैं। कम से कम मुंबई में यही स्थिति है, बाकी महाराष्ट्र को लेकर शिवसेना और मनसे इतने चिंतित नहीं दिखाई देते। शिवसेना और भाजपा पुराने सहयोगी हैं। महाराष्ट्र में उनका गठबंधन है। इसलिए दोनों के बीच क्षेत्रवाद पर असहमति आश्चर्यचकित करती है। भाजपा क्षेत्रवाद की संकीर्णता से खुद को ऊपर बताना चाह रही है और शिवसेना का राजनीतिक अस्तित्व इस संकीर्णता पर ही टिका है। शिवसेना को केवल महाराष्ट्र और उसमें भी मुंबई व आसपास की राजनीति करनी है, जबकि भाजपा को देश भर में इसलिए गठबंधन के बावजूद दोनों अपना अलग रुख अख्तियार किए हुए हैं और भाजपा ने इसे स्वाभाविक करार दिया है। शिवसेना की यह संकीर्णता आज की नहीं बल्कि पिछले ४० वर्षों की है। राज ठाकरे ने अलग होकर मनसे बनाई लेकिन नीति अलग नहीं कर पाए। चाचा-भतीजे में होड़ चलती रहती है कि मराठियों का मुद्दा कौन ज्यादा उठाये है। देश की जनता जानती है कि इनकी राजनीति संकीर्ण स्वार्थों की है। इसलिए उनसे अपेक्षा नहीं रहती कि वे विदर्भ के किसानों के बारे में सोचें। राज ठाकरे हों या बाल ठाकरे अगर कोई संविधान को खुली चुनौती दे और विपक्ष व सत्तापक्ष सिर्फ जुबानी पलटवार करे तो क्या कहेंगे। अगर गोलमाल न होता तो महाराष्ट्र चुनाव से पहले जब राज ठाकरे के गुंडे उत्तर भारतीयों को सड़कों पर दौड़ा दौड़ा कर मार रहे थे। तब चिदंबरम कहां थे भाजपा के गडकरी कहां थे। तब तो गडकरी महाराष्ट्र भाजपा के भी अध्यक्ष थे। अगर बाल ठाकरे और राज ठाकरे जैसे नेताओं पर समय रहते कानूनी कार्रवाई ईमानदारी से की जाती तो नौबत यहां तक न पहुंचती।ठाकरे के लोग मुंबई से बिहारियों को भगा रहे हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि मुंबई में जब आतंकवादी हमला हुआ तो एनएसजी में शामिल बिहार, यूपी और पूरे देश के जवानों ने ही उन आतंकवादियों से लोहा लिया था।
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