Monday, February 1, 2010

कांग्रेस चली मनसे की राह

टैक्सी चालकों के बारे में किया गया महाराष्ट्र सरकार का फैसला आर्थिक, सामाजिक और संवैधानिक स्तर पर भी गलत है। इस फैसले से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलता है। इस फैसले से स्पष्ट है कि कुछ राजनीतिक दल संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए इसके माध्यम से क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला साफ तौर से जाहिर है कि उत्तर भारतीयों के खिलाफ है जो मुुंबई में टैक्सी चलाने के पेशे में काफी संख्या में हैं। महाराष्ट्र सरकार ने मराठी भाषा की जानकारी को अनिवार्यता व कम से कम १५ साल महाराष्ट्र में रहने की अवधि को अनिवार्य करार देकर उत्तर भारतीयों के अधिकारों का हनन किया है।जाहिर है कि अभी तक काम चलाउ मराठी जानने वालों को ही टैक्सी चालक का परमिट दे दिया जाता था। लेकिन सरकार ने यह निर्णय करके शिव सेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसे संगठनों का ही समर्थन किया जो सदैव से ही उत्तर भारतीयों के खिलाफ रहते हैं। महाराष्ट्र सरकार का यह कदम उन्हें तात्कालिक राजनैतिक लाभ तो पहुंचा सकता है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम पार्टी के खिलाफ हो जाएंगे। हालांकि इस फैसले के भारी विरोध को देखते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने अपने बयान से मुकरते हुए यह कहा कि परमिट उन्हीं टैक्सी वालों को दिया जाएगा जिन्हें क्षेत्रीय भाषओं का ज्ञान होगा।जाहिर है कांग्रेस से एनसीपी गठबंधन की सरकार ने मराठी मानुस को खुश करने के लिए मनसे की राह पकड़ ली है। महाराष्ट्र सरकार ने फैसला लिया है कि अगर किसी व्यक्ति को महाराष्ट्र में टैक्सी चलाने के लिए परमिट चाहिए तो उसको यहां का १५ साल का आवास प्रमाण पत्र देना होगा। परमिट उन्हीं को मिलेगा जो मराठी लिख, बोल और पढ़ सकते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने यह फैसल गत दिनो हुई कैबिनेट बैठक में लिया। इस फैसले से उत्तर भारतीय टैक्सी चालकों की मुश्किलें बढ़ेंगी।मनसे ने मराठी मानुस के नाम पर अपनी राजनीति की शुरुआत मुंबई में उत्तर भारतीय टैक्सी चालकों की बेरहमी से पिटाई करके और टैक्सियों को जलाकर की थी। अब महाराष्ट्र सरकार ने मराठी मानुस को खुश करने के लिए टैक्सी परमिट के लिए नया फरमान जारी किया। यह नियम फिलहाल उस टैक्सी चालकों पर लागू होगा जो परमिट लेकर टैक्सी चला रहे हैं। नए टैक्सी परमिट के लिए नया नियम लागू होगा। सरकार ने हर साल ४००० टैक्सी परमिट देने की घोषणा की है, जो नए नियम के आधार पर मिलेंगे। जहां तक भाषा का प्रश्न है इसे लेकर विवाद सही नहीं है। एक ड्राइवर से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वह उस क्षेत्र की भाषाओं को जरूर समझे जहां वह टैक्सी चलाता है। अगर ऐसा नहीं होगा तो उसका अपने पेशे से जुड़े रहना कठिन हो जाएगा। इसलिए मुंबई या महाराष्ट्र के किसी अन्य हिस्से में टैक्सी चलाने के लिए मराठी की इतनी समझ जरूरी है कि ड्राइवर अपनी सवारियों से आसानी से संवाद कर सकें, ठीक वैसे ही जैसे कामनवेल्थ गेम्स के दौरान दिल्ली के टैक्सी चालकों के लिए अंग्रेजी का थोड़ा बहुत ज्ञान अपेक्षित होगा। डोमिसाइल की शर्त हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। आज जब ग्लोबलाइजेशन के दौर में राष्ट्रों तक की सीमाएं शिथिल हो चुकी हों तो भारत के एक महत्वपूर्ण राज्य में यह विवाद उठना चिंताजनक है। यूरोपीय यूनियन ने इसकी नायाब मिसाल पेश की है।देश के विभिन्न राज्यों में आवागमन और रोजगार करने पर रोक लगाना या उसे हतोत्साहित करना कहीं से भी समझदारी नहीं है। राज्य सरकार टैक्सी परमिट या अन्य मामलों में व्यापक नजरिए का परिचय दे सकती है। यदि महाराष्ट्र सरकार ने क्षेत्रीयता फैलायी तो अन्य राज्य सरकारें भी ऐसा कर सकती हैं। महाराष्ट्र खास कर मुंबई में चचा-भतीजे की जोड़ी उत्तर भारतीयों खास तौर से गरीब टैक्सी चालकों पर लट्ठ बरसाने की तैयारी में एक बार फिर जुट गयी हैं। अब राज के गुंडे सड़कों पर फिर वही दृश्य दोहराएंगे जो करीब डेढ़ साल पहले दिखा चुके हैं। आग तो पहले से ही लगाई जा रही थी जब राज ठाकरे ने धमकी दी थी कि सरकार इस साल के ४५०० टैक्सी परमिट सिर्फ मराठियों को दे वरना सड़कों पर नान मराठियों की टैक्सी चलाने नहीं दी जाएगी। इस आग को सरकार के मुखिया अशोक चव्हाण ने भी हवा दे दी। दिल्ली से जब अशोक चव्हाण से स्पष्टीकरण मांगा गया तो वह अपने बयान से मुकर गए। वे बोले 'टैक्सी चालकों के लिए स्थानीय भाषा आनी चाहिए, चाहे वह मराठी हो या हिंदी व गुजराती।' कांग्रेस ने भी ऐसी ही दलील दी।महाराष्ट्र में ऐसा कानून इक्कीस साल पुराना है पर चचा भतीजा इतने में कहां मानने वाले। चचा लंबे समय से कुर्सी से महरूम तो भतीजा पहली बार तेरह सीटें जीतकर नशे में चूर है। हिंदी के खिलाफ राज ठाकरे का एपीसोड तो अबू आजमी के साथ विधानसभा में हो चुका है। चालीस साल पहले चचा ने जो दक्षिण भारतीयों के खिलाफ किया वही उत्तर भारतीयों के खिलाफ राज ठाकरे अपना रहे हैं। कांग्रेस ने भी ठाकरे परिवार में फूट का फायदा उठाया। उसे इसका फायदा भी हुआ। पर अशोक चव्हाण का बयान ऐसा है कि इससे आम आग भड़केगी ही। राज का नाटक अभी बाकी है। कांग्रेस तो महाराष्ट्र में राज ठाकरे के क्षेत्रीय भंवर में उलझ ही चुकी है। यही हाल बीजेपी का भी। नितिन गडकरी फिलहाल संभल संभल कर बोल रहे हैं पर टैक्सी परमिट मामले में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना की भाषा राज जैसी ही है। खुद उद्धव मुंबई में आने जाने वालों के लिए भी परमिट की पैरवी कर चुके हैं। अब टैक्सी परमिट हो या महाराष्ट्र में घुसने का परमिट बात तो दोनों ही गलत है।

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