Monday, January 25, 2010

दीन हीन भारतीय हाकी

बातचीत की और खिलाड़ियों को आश्वस्त किया कि उन्हें सभी वित्तीय सहायता दी जाएंगी एवं उनकी मांगे भी मानी जाएंगी। खिलाड़ी अपनी शर्तों को माने जाने के बाद प्रशिक्षण शिविर में लौट गए। हाकी टीम के खिलाड़ियों द्वारा अपनी मांग उठाने के बाद कुछ राज्यों ने इन्हें आर्थिक मदद की पेशकश भी की। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पूरी टीम को वित्तीय मदद देने का प्रस्ताव किया है। पंजाब के उपमुख्यमंत्री और हाकी पंजाब टीम के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी कहा कि उनका राज्य हाकी टीम का प्रायोजक बनने को तैयार हैं, बशर्ते खेल मंत्रालय उसे यह उत्तरदायित्व देने को तैयार हो। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने खिलाड़ियों को आर्थिक मदद देने के उद्देश्य से हाकी इंडिया को ५ करोड़ रुपये की मदद देने की घोषणा की। जबकि टीम के प्रायोजक सहारा ने खिलाड़ियों के लिए एक करोड़ रुपये देने का ऐलान किया। उल्लेखनीय है कि १३ मार्च २०१० से दिल्ली में वर्ल्ड कप टूर्नामेंट शुरू होना हैं। देश के हाकी बोर्ड द्वारा हाकी इंडिया की टीम को बकाया भुगतान न किए जाने के बाद देश के हाकी खिलाड़ियों ने हाल ही में बोर्ड से बगावत कर दी थी। वैसे देखा जाए तो हाकी खिलाड़ी किन हालात में खेलते आ रहे हैं यह देख लेगे के बाद कोई भी इन खिलाड़ियों का समर्थन करता नजर आएगा। गौरतलब है कि मीडिया जगत में आखिरी बार हाकी का जिक्र तब हुआ था, जब भारतीय हाकी संघ को पिछले साल अप्रैल में भंग कर दिया गया था। फेडरेशन के अध्यक्ष पर गुंडई के इतने आरोप लगे कि भारतीय ओलंपिक संघ ने इस संस्था को ही ध्वस्त कर दिया। इसके बाद न कभी हाकी का जिक्र हुआ और न ही उसके खिलाड़ियों का। अब कोई दस महीने बाद एक बार फिर भारतीय हाकी का जिक्र हो रहा है लेकिन जिस घटनाक्रम के तहत यह चर्चा शुरू हुई है वह इस खेल के लिए राष्ट्रीय शर्म से कम नहीं है। पहले दुनिया में भारत और पाकिस्तान हाकी के प्रतिनिधि देश माने जाते थे। भारत ने हाकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा दे रखा है। जैसे दूसरे सभी राष्ट्रीय प्रतीकों का बुरा हाल है वैसे ही हाकी की भी हालत खस्ता है। हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की कहानियां पढ़कर समझदार हुई पीढ़ी को जब पता चला कि हाकी जैसा कोई खेल भी है जो राष्ट्रीय खेल है। सरकार ने हाकी की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए एकमात्र राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम भी ध्यानचंद के नाम पर कर रखा है। उस दौर में जब ध्यानचंद हाकी खेलते थे तो भारत का नाम इस खेल में चमचमाता था। हाकी ही एकमात्र ऐसा खेल है जिसने ओलंपिक में भारत को आठ स्वर्ण पदक दिलाए हैं। समय के प्रवाह में क्रिकेट सर्वप्रिय खेल बन गया। कारपोरेट घरानों ने भी इसे पागलपन की हद तक जुनून बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जैसे अंग्रेजों की हर हरकत हमें आकर्षित करती है वैसे ही लाट साहब के इस खेल ने भी दिल में खास जगह बना ली। जैसे हिन्दी राष्ट्रीय भाषा होते हुए भी गैरजरूरी समझी जाती है वैसे ही हाकी राष्ट्रीय खेल होते हुए भी नकारा खेल बनता गया। आस्ट्रेलिया अगर आज क्रिकेट में आगे की पंक्ति पर खड़ा है तो वह हाकी, टेनिस, तैराकी, फुटबाल में भी अपनी धाक जमाये हुए है। जर्मनी फुटबाल खेलता है तो हाकी में चुनौती ह। टेनिस में भी वह नाम कमाता है। चीन ने ओलंपिक में अमेरिका को नाको चने चबवा दिए। लेकिन अपने यहां क्रिकेट को ही सबसे बड़ा खेल मान लिया गया है। एक तरह से देश में क्रिकेट उन्माद पैदा कर दिया गया है। खेल भी अब बाजार के जिम्मे कर दिए गए हैं। बाजार तय कर रहा है कि वह किस खेल को कितना बेचे। इस मोलभाव में हाकी का कोई नाम नहीं ले रहा है।

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