Monday, January 25, 2010

दांव पर अस्तित्व

मोहन भागवत जब पिछले दिनों लखनऊ आये थे तो खासी राजनीतिक गहमागहमी देखी गयी। उनके स्वागत में कुछ उत्साही भाजपा कार्यकर्ताओं ने बैनर व पोस्टर टांगे। संघ के एक महत्वपूर्ण केंद्र रहे निरालानगर के सरस्वती शिशु मंदिर में उनका भाषण सुनने के लिए भाजपा के कई बड़े नेता पूर्ण गणवेश में इकट्ठा हुए। इसी तरह लखनऊ सहित प्रदेश के कई महत्वपूर्ण शहरों में पिछले माह बुजुर्ग भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन धूमधाम से मना करके माहौल को राजनैतिक रंग देने की कोशिश हुई। इन तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा में खास बदलाव का दौर शुरू नहीं हो सका। समूचे खेमे में मायूसी छाई हुई है और सन्नाटा पसरा हुआ है। हाल में संपन्न हुए विधान परिषद चुनाव में भी पार्टी खाता नहीं खोल सकी। इससे पहले प्रदेश में जितने भी विधान सभा उपचुनाव हुए उसमें भी भाजपा कोई खास सफलता नहीं हासिल कर सकी थी। अब भारतीय जनता पार्टी के सामने न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि देश भर में अस्तित्व बचाने का संकट उत्पन्न हो गया है। जब भी उत्तर प्रदेश में बसपा के राजनैतिक विकल्प की चर्चा छिड़ती है लोग या तो सपा का नाम लेते हैं या फिर कांग्रेस का। भाजपा की कोई भूल करके भी चर्चा नहीं करता है। पिछले एक डेढ़ साल से भाजपा उत्तर प्रदेश में कुछ भी नहीं कर सकी।भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में चौथे स्थान पर खिसक चुकी है। जबकि उत्तर प्रदेश में आज भी उसके पास राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर पर कई बड़े नेता हैं। भाजपा की सबसे बड़ी चिंता यह है अब उसकी सामान्य तौर पर कोई चर्चा भी नहीं होती है। पिछले एक डेढ़ साल से जब भी प्रदेश में कोई चुनाव नजदीक आता है, भाजपा नेताओं के हाथ पांव फूल जाते हैं। उन्हें प्रत्याशी तक नहीं मिलते। हाल में संपन्न हुए विधान परिषद चुनाव में भाजपा को सभी छत्तीस सीटों के लिए प्रत्याशी नहीं मिल सके। पार्टी एक भी विधान परिषद सीट न जीत सकी।पिछले साल प्रदेश में जितनी भी विधानसभा सीटों के लिए उप चुनाव हुए भाजपा एक भी सीट नहीं हासिल कर सकी। लखनऊ पश्चिम की प्रतिष्ठापूर्ण सीट जो पिछले कई चुनावों से भाजपा नेता लालजी टंडन जीतते आ रहे थे, इस बार कांग्रेस ने हथिया ली। लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई इस सीट पर जब भाजपा ने उनके पुत्र के स्थान पर पुराने कार्यकर्ता अमित पुरी को चुनाव मैदान में उतारा तो टंडन अपनी नाराजगी छिपा न सके। उनकी नाराजगी का ही नतीजा था कि भाजपा को अपनी मजबूत सीट से हाथ धोना पड़ा। अन्य सीटों पर भी यही हाल रहा।भाजपा की उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी चिंता यह है कि कल्याण सिंह , कलराज मिश्र, लालजी टंडन, राजनाथ सिंह, ओम प्रकाश सिंह के रूप में जो नेतृत्व१९८९-९० के दौर में उभरा था, अब ढलान पर है। कल्याण सिंह दूसरी बार भाजपा छोड़ चुके हैं। लालजी टंडन लखनऊ लोकसभा सीट से सांसद जरूर हैं किंतु उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी वह हैसियत नहीं है जो मायावती, मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह जैसे नेताओं की है। राजनाथ सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल समाप्त करके इन दिनो अवकाश की मुद्रा में हैं। वे प्रदेश की राजनीति में नये सिरे से सक्रिय होंगे इसकी कम संभावना है। ओम प्रकाश सिंह पूर्वांचल के बड़े नेता जरूर हैं किंतु अब उनसे भी चमत्कार की उम्मीद करना व्यर्थ है। विनय कटियार जो कभी बजरंग दल के फायर ब्रांड नेता थे, एक जमाने में तेजी के साथ आगे बढ़े। इन्हें भरपूर लोकप्रियता भी हासिल हुई किंतु ये कुछ खास न कर सके।भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष डा. रमापति राम त्रिपाठी भी अपना अलग राजनैतिक कद नहीं बना सके। न तो वे कभी पूर्वांचल के बड़े नेता थे और न ही प्रदेश स्तर पर उनकी गिनती होती थी। उनसे ज्यादा तो गोरखपुर के सांसद योगी आदित्य नाथ की भाजपा में पूछ है। गोरखनाथ पीठ के महंत होने के अलावा वे हिंदू युवा वाहिनी के बहाने भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों, कस्बों, शहरों व महानगरों में छाये हुए हैं। यह वही संगठन है जो कभी आखिल भारतीय हिंदू महासभा के नाम से जाना जाता था। हिंदू महासभा को अपने जमाने में महंत दिविजय नाथ और महंत अवैद्यनाथ ने भी आगे बढ़ाया था। यह संगठन उसी तरह प्रखर हिंदुत्व की वकालत करता है जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्र्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और शिव सेना। बहरहाल डा. रमापति राम त्रिपाठी भी भाजपा को नयी पहचान न दे सके।भाजपा को उत्तर प्रदेश में दुबारा पटरी पर लाने के लिए नितिन गडकरी और मोहन भागवत कौन से नये नुस्खे आजमायेंगे यह देखना दिलचस्प रहेगा। भाजपा से जुड़े संगठनों भारतीय जनता युवा मोर्चा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ का बुरा हाल है। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी उत्तर प्रदेश में विस्तार थमा है। राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद आंदोलन के थम जाने के बाद भाजपा को उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोई ऐसा मुद्दा नहीं मिला जिसके बल पर वह अपनी राजनैतिक जमीन बचाये रखती। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बसपा की तीन बार सरकार बनवाई। इससे बसपा तो लगातार मजबूत होती गयी किंतु भाजपा पिछड़ती गयी। उसे कल्याण सिंह की बगावत ने भी कमजोर किया। कल्याण सिंह ने पहले राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई, फिर वे सपा के बगलगीर हुए और अब उन्होंने जन क्रांति पार्टी बनाई हर बार उन्होंने भाजपा को ही कमजोर किया। भाजपा की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसके पास उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं बचा जिसके सहारे वह आगे की राजनीति कर सके

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