अपने मन की कहते हैं और विरोधियों पर पूरी सौम्यता से हमलावर होते हुए कांग्रेस के युवराज और महासचिव राहुल गांधी कांग्रेस के अभियान के नेता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सफलता के झंडे गाड़ने के बाद अब कांग्रेस के युवा सम्राट राहुल गांधी ने बिहार की ओर अपना रुख किया है। अपने हाल के बिहार दौरों से श्री गांधी ने यह संकेत दे दिया है कि बिहार अब उनकी पहली प्राथमिकता है और बिहार में कांग्रेस को स्थापित करने में वह कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।राहुल के बिहार के दौरों पर अगर एक नजर डाली जाए तो उससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी राहुल ने दलितों, शोषितों और गरीबों के बीच जाकर उनका दुःख दर्द सुनने का अभियान छेड़ दिया है। वैसे तो पूरे देश के कमजोर वर्गों की राहुल की ओर आशा भरी नजरें लगी हुई हैं लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने क्रमबद्ध तरीके से अपना राजनीतिक एजेंडा तय कर दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली भारी सफलता का श्रेय राहुल गांधी को जाता है। इस चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद राहुल की निगाहें अब प्रदेशों के विधान सभा चुनाव पर है।इन्ही विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी ने अपना राजनीतिक एजेंडा तैयार किया है। उन्होंने अपने एजेंडे में प्राथमिकता के आधार पर बिहार विधान सभा चुनाव को पहले स्थान पर रखा है। अगामी विधान सभा चुनाव में राहुल ने बिहार में कांग्रेस को पुनः वापस लाने का संकल्प किया है। बिहार में हो रहे उनके दौरों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में कांग्रेस को मजबूत करके राहुल उत्तर भारत में कांग्रेस की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः हासिल करना चाहते हैं।धीरे धीरे राहुल गांधी उत्तर भारत में कांग्रेस की धूरी बनते जा रहे हैं। वैसे तो भारतीय राजनीति की धुरी धीरे-धीरे राहुल गांधी की तरफ केंद्रित होती दिखाई दे रही है। अलग-अलग लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं लेकिन राहुल गांधी का विजन सिर्फ सत्ता की राजनीति तक सीमित नहीं है। सत्ता से ऊपर उठकर वह देश को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार कर रहे हैं। देश के सामने चुनौतियां २२वीं सदी की हैंं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए राहुल हर प्रदेश का दौरा करके वहां की स्थितियों का अवलोकन कर उन पर कार्य कर कर रहे हैं। नये जमाने की नई चुनौतियों के लिए राहुल देश को तैयार करना चाहते हैं। वे अपने पिता राजीव गांधी की तरह अपने काम और विचारों के प्रति बेहद आश्वस्त हैं। भारतीय राजनीति में राहुल गांधी इकलौते ऐसे नेता हैं जिनका व्यक्तित्व कोरे कागज की तरह है। उनके व्यक्तित्व में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, लीक से हटकर सोचने और कुछ करने की क्षमता है। कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव सहित महाराष्ट्र, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली आदि प्रदेशों में बेहतरीन काम करके दुबारा सरकार बनायी है तो उसमें कहीं न कहीं राहुल गांधी की राजनीतिक सोच का भी सकारात्मक असर पड़ा। अब इसी तर्ज पर वे बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गरीबों, दलितों और आम आदमी के बीच जाकर उनकी परेशानियों से रू-ब-रू हो रहे हैं। आने वाले समय में बिहार में विधान सभा के चुनाव होने है। जिसके मद्देनजर राहुल प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं। बिहार में राहुल गांधी ने 'एकला चलो' का नारा दिया है। हाल ही में अन्य प्रदेशों में भी उन्होंने इसी नारे के सहारे कांग्रेस की विजय पताका फहरायी और नतीजा सबके सामने है। वे उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की वापसी चाहते हैं। हाल में युवक कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए उन्होंने सीधे साक्षात्कार का सहारा लिया। बहरहाल मुद्दों पर संघर्ष के बजाय वे युवाओं पर विशेष निगाह रखना चाहते हैं। संघर्ष की बात वे अक्सर देश को याद दिलाते रहते हैं। आजादी और आंतकवाद से निपटने के लिए उनके परिवार ने कितनी कुर्बानी दी सभी जानते हैं। उनकी कोशिश है कि संघर्ष के बजाय युवाओं को अपना अभिमन्यु बनाया जाए। देश भर में कोई दस हजार कालेज हैं। हरेक कालेज में कम से कम सौ छात्रों को छांटकर उनको अपनी टोली में शामिल करना, जिनसे उनका सीधा संवाद हो, यह है राहुल की रणनीति। उनके टेलेंट हंट से प्रभावित एक युवा कांग्रेसी नेता का कहना है कि राहुल का यह सपना जब साकार होगा तब वह देश के युवाओं के अकेले नेता होंगे। इन पढ़े लिखे एक लाख नौजवानों के दम पर वे भारत की तस्वीर बदल देंगे। उनकी हंट प्रतिभा का प्रयोग और भर्ती की खबर प्रायःसुर्खियां बटोरती रहती है। राहुल वर्तमान समय में मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश , झारखंड आदि राज्यों में जाकर वहां के कालेजो, विश्र्वविद्यालयों में युवाओं से सीधे रू-ब-रू हो रहे हैं। जब वह किसी कालेज में जाते हैं तो सब पर उनका जादू बढ़ चढ़ कर बोलता है। इसलिए कभी दिल्ली तो कभी गुजरात के किसी कालेज में पहुंच जाते हैं। हाल में गुजरात में राज्य सरकार ने युवाओं के बीच कार्यक्रम की उन्हें अनुमति नहीं दी तो वे कालेज की कैंटीन पहुंच गए। कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश में कानपुर में चंद्रशेखर कृषि विश्व विद्यालय में उनके कार्यक्रम को इजाजत नहीं मिली तब भी वह वहां पहुंच गए। मध्य प्रदेश में छात्रों से मुलाकात कर उन्होंने देश के सामने आने वाली भविष्य की चुनौतियों पर चर्चा की। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस के नेताओं को संदेश दिया कि 'कांग्रेस को कोई और नहीं हराता बल्कि खुद कांग्रेसी ही हराते हैं।' कभी वह कहते हैं कि 'सभी पार्टियों में लोकतंत्र का अभाव है।' कुछ राजनैतिक पंडितों ने सवाल उठाया कि कांग्रेस खुद कोई लोकतांत्रिक पार्टी नहीं है लेकिन कांग्रेसियों ने खूब वाहवाही की। राहुल बड़े होने लगे हैं, लोकतंत्र की बात करने लगे हैं। कांग्रेस का कमाल है कि उसके पास लोकतंत्र की बात करने वाला महासचिव हैं।
देश की गरीबी के बारे उनके पिता राजीव गांधी को कम चिंता नहीं थी। उन्होंने सत्ता को दलालों से दूर रखने के साथ यह खुलासा भी किया था कि केंद्र के एक रुपये में से केवल पंद्रह पैसा ही नीचे पहुंचता है। उसका जिक्र कर राहुल गांधी अभी भी देश के गरीबों का हाल जानने की कोशिाश करते हैं। राहुल गांधी को जिस तरह उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों की सराहना मिल रही है, वह भी एक सुखद आश्चर्य है। आमतौर पर हमारे नेताओं में अपने विरोधियों की प्रशंसा करने का बड़प्पन नहीं दिखाई देता। अब तो अपने विरोधियों की हरेक गतिविधि को आंख मूंदकर खारिज करना राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। ऐसे में अगर बीजेपी नेता शत्रुघ्न सिन्हा, समाजवादी पार्टी की सांसद जयाप्रदा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राहुल गांधी के काम की तारीफ की तो यह निश्चय ही रेखांकित करने योग्य तथ्य है। शत्रुघ्न सिन्हा और जयाप्रदा ने किसी सियासी रणनीति के तहत ऐसा नहीं किया। न ही अपनी पार्टी के निर्देश पर इन्होंने ऐसा बयान दिया। इन्होंने तो अपने मन की बात खुलकर कही। इन्होंने राहुल के कामकाज का निष्पक्ष मूल्यांकन किया। जयाप्रदा सपाई हैं तो शत्रुघ्न सिन्हा उस दल से हैं जिसने राहुल गांधी की गांवों की यात्राओं को ढोंग करार दिया। फिर भी शत्रुघ्न सिन्हा ने अपना विचार व्यक्त करने में संकोच नहीं किया। संघ भले ही कांग्रेस की अनेक मामलों में खिंचाई करता रहा हो पर गांवों से जुड़ने की राहुल की कोशिशों की उसने तारीफ की और सभी राजनेताओं को ग्रामीण जनजीवन से जुड़ने की सलाह दी । आरएसएस का कहना है कि अगर गांवों का विकास हुआ तो वहां से पलायन की समस्या पर रोक लग जाएगी। दरअसल राहुल गांधी ने भारतीय राजनीति की जड़ता को तोड़ने की कोशिश की है। उनका संदेश है कि सियासत को एयरकंडीशंड कमरों से बाहर निकाला जाए। उसे पोलिटिकल मैनेजरों के चंगुल से मुक्त किया जाए और समाज के व्यापक वर्ग के हितों से जोड़ा जाए। दुर्भाग्य से ज्यादातर राजनीतिक दल इसे कांग्रेस का राजनीतिक हथकंडा ही मानते रहे हैं लेकिन इसे एक सबक के रूप में लिया जाए तो देश का ही भला होगा। कुछ अरसा पहले सोनिया गांधी ने कहा था कि उनका बेटा या बेटी अगर सियासत में आते हैं तो यह उनका अपना फैसला होगा। यह माना जा सकता है राहुल अपने विवेक से सियासत में सक्रिय हुए हैं। उनकी सक्रियता का ही नतीजा है कि कांग्रेस आज पूरे देश में हर जगह मजबूत हो रही है। राहुल को नेहरू-गांधी परिवार का जो प्रभामंडल मिला है उसकी एक खासियत यह भी रही है कि हर अगली पीढ़ी ने खुद को पिछली पीढ़ी से कुछ अधिक महत्वाकांक्षी, कुछ अधिक उग्र साबित किया है। मोतीलाल नेहरू स्वतंत्र उपनिवेश की स्थिति से संतुष्ट नजर आते थे लेकिन जवाहरलाल ने पूरी आजादी को राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया। प्राइम मिनिस्टर नेहरू केरल की निर्वाचित सरकार को हटाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा गांधी की जिद ने ऐसा करना जरूरी समझा। इंदिरा गांधी की तुलना में संजय गांधी के तौर तरीके ज्यादा उग्र थे। शांत और गंभीर माने जाने वाले राजीव गांधी भी जब महासचिव बने तो आंध्र प्रदेश के चीफ मिनिस्टर को हवाई अड्डे पर सरेआम फटकार लगा बैठे। इसे लोगों ने आंध्र गौरव का अपमान माना था, जो आखिरकार तेलुगू देशम के उभार की वजह बना। इस उग्रता को सिर्फ नकारात्मक संदर्भ में न देखा जाए तो यह आशा की जा सकती है कि अगली पीढ़ी बेहतर कल की तरफ ज्यादा बेकरारी से बढ़ना चाहती है। अब राहुल इसके एक नुमाइंदे के तौर पर सामने आए हैं। सोनिया गांधी ने कहा था कि उनके या राहुल के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। लेकिन कांग्रेस में जिस तरह का माहौल बनता जा रहा है उससे तो यही लगता है कि राहुल खुद वह जादू की छड़ी हैं जो यूपी और बिहार में कांग्रेस को फिर से आगे ही नहीं लाएंगे बल्कि गठबंधन की मजबूरी से भी आजाद कर देंगे। भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव अक्सर बिना किसी शोरशराबे के आते रहे हैं। फिर चाहे वह गांधी का एक अल्पज्ञात नेता के तौर पर ट्रेन के तीसरे दर्जे में सवार होकर भारत दर्शन करना हो या फिर कांशीराम का घूम घूमकर दलित सरकारी कर्मचारियों का संगठन बनाना। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में चुनावों के जरिए पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र लाने की कवायद को भरपूर चर्चा मिल रही है। राहुल गांधी पार्टी में अपने स्टेटस और गांधी नाम की वजह से मिले ऊंचे कद से जुड़े सवालों पर एक ही और बहुत ठोस जवाब देते हैं कि सिर्फ इसलिए कि मैं एक हायार्की, एक सिस्टम की वजह से यहां खड़ा हूं, मैं चीजों को बदलने की कोशिश न करूं, तो गलत होगा। ऐसी ही एक कोशिश है पार्टी को युवा ऊजार् और युवा कार्यकर्ता बख्शना।
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