Wednesday, January 6, 2010

लौटेगा हाकी का गौरव

भारतीय खिलाड़ियों के लिए वर्ष २०१० काफी अहम होगा। इस साल भारत में ही दो बड़े खेल आयोजन हाकी विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेल आयोजित किए जाएंगे। वर्ष की पहला सबसे महत्वपूर्ण खेल आयोजन हाकी विश्व कप २८ फरवरी से १३ मार्च तक नई दिल्ली में खेला जाएगा। यह सिर्फ भारतीय टीम हीं नहीं बल्कि विदेशी कोच जोंस ब्रासा के लिए भी अग्नि परीक्षा होगी। भारतीय हाकी पिछले कुछ सालों में लगातार विवादों और लचर प्रदर्शन के कारण चर्चा में रही लेकिन आश्ाा है कि विश्व कप में वह अच्छा प्रदर्शन करके खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल करने की तरफ मजबूती से कदम बढ़ाएगी। उम्मीद है कि वर्ष २०१० में भारतीय हाकी के लिए उम्मीदों की नई सुबह लेकर आएगा। लेकिन भारतीय हाकी को फिर से जिंदा करना है तो उसके ढांचे में बदलाव करना होगा। भारत में हाकी के लिए अभी भी इसके मुरीदों में पुराना प्यार है। इसका अंदाज शायद इसी बात से लगाया जा सकता है आज भी रंगास्वामी कप के लिए खेली जाने वाली राष्ट्रीय हाकी चैंपियनशिप के मैच देखने के लिए क्रिकेट में रणजी ट्राफी, दिलीप ट्राफी और देवधर ट्राफी तथा अब विजय हजारे ट्राफी वनडे मैचों से ज्यादा हाकी प्रेमी आते हैं। २०१० में भारत घरेलू मैदान में और घरेलू समर्थकों के बीच वर्ल्ड कप के मैच खेलेगा। इसका फायदा उठाते हुए अगर वह इसमें टाप छह टीमों में जगह बनाने में कामयाब रहता है, तो भारत को दुनिया की इलीट टीमों के चैंपियंस ट्राफी जैसे टाप लेवल टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिलेगा। भारतीय खिलाड़ी आस्ट्रेलिया, जर्मनी, हालैंड, इंग्लैंड, स्पेन, साउथ कोरिया और न्यूजीलैंड की टीमों के खिलाफ खेलेंगे, उनके खेल का स्तर तो सुधरेगा ही उन्हें खुद पर यह भरोसा होगा कि वे दुनिया में किसी से कम नहीं। भारतीय हाकी के बेहतर होने की शुरुआत के लिए उसे वर्ल्ड कप जैसा प्लेटफार्म नहीं मिल सकता। अच्छी बात यह है कि वर्ल्ड कप के बाद कामनवेल्थ गेम भी भारत में होने वाले हैं। एक ही साल में देश में दो बड़े टूर्नामेंट का होना भारतीय हाकी के लिए सुखद संयोग कहा जा सकता है। भारत खुशकिस्मत है कि उसने बतौर मेजबान हीरो होंडा हाकी वर्ल्ड कप के लिए खेलने का मौका पा लिया। इस बार इस वर्ल्ड कप में कुल १२ टीमें शिरकत करेंगी और इन्हें दो पूल ए और बी में बांटा गया है। पूल ए में मौजूदा चैंपियन जर्मनी, हालैंड, साउथ कोरिया, न्यूजीलैंड, कनाडा और अर्जेंटीना जैसी सशक्त टीमें हैं। भारत को पूल बी में फिलहाल सबसे जोरदार फार्म में चल रही आस्ट्रेलिया, स्पेन, इंग्लैंड, चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान और साउथ अफ्रीका के साथ रखा गया है। भारतीय हाकी टीम की गाड़ी पटरी पर लाने का जिम्मा उसके पहले फुल टाइम विदेशी कोच स्पेन के जोंस ब्रासा तथा भारतीय हाकी टीम को एक तार में जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाने वाले कोच हरेंद्र सिंह पर होगी। घरेलू दर्शकों के जबर्दस्त सपोर्ट के बीच भारत के लिए अपनी खोई प्रतिष्ठा को दोबारा हासिल करने का यह सुनहरा मौका होगा। आस्ट्रेलिया की मौजूदगी में भारत का अपने पूल में ही शुरू की दो टीमों में स्थान पाना इतना आसान न होगा। साथ ही स्पेन, इंग्लैंड और पाकिस्तान को भी कम नहीं आंका जा सकता है। इस पूल में दरअसल आस्ट्रेलिया को छोड़ बाकी सभी टीमें लगभग बराबरी की हैं। पिछले कुछ समय से भारतीय हाकी जितने बुरे दौर से गुजरी है, इस वर्ल्ड कप में उसके लिए दुनिया की टाप छह टीमों में भी जगह बनाना बड़ी उपलब्धि होगी। भारत वर्ल्ड कप में टाप सिक्स में रहा तो वह इलीट चैंपियंस ट्राफी के लिए क्वालीफाई कर लेगा। दरअसल इस वर्ल्ड कप में भारत की चुनौती कहां तक जाएगी, यह बहुत हद तक संदीप सिंह जैसे दुनिया के बेहतरीन ड्रैग फ्लिकर के निशानों और शिवेंद्र सिंह, कप्तान राजपाल सिंह, वर्ल्ड आल स्टार टीम में चुने गए विंगर प्रभजोत सिंह, दीपक ठाकुर, तुषार खांडेकर गुरविंदर सिंह चंडी जैसे हाकी के बेहतरीन खिलाड़ियों के साथ मध्यपंक्ति में अर्जुन हालप्पा, विक्रम पिल्लै, गुरबाज सिंह, धनंजय महादिक और भरत चिकारा के खेल पर निर्भर करेगा। भारत की फिलहाल सबसे बड़ी चिंता उसकी रक्षापंक्ति है। भारतीय हाकी को संकट से उबरने के लिए पाकिस्तान से सबक लेना चाहिए। पाकिस्तान ने हाकी को अलविदा कह चुके ड्रैग फ्लिकर सुहेल अब्बास को वापस बुलाया। फुलबैक सुहेल और अनुभवी विंगर रेहान बट की वापसी से पाकिस्तान ने भारत को चैंपियंस चैलेंज वन में साल्टा (अर्जेंटीना) में सेमीफाइनल में करारी शिकस्त दी। बेहतर होगा भारत अपने सबसे मजबूत राइट फुलबैक दिलीप टिर्की को अब वापस बुलाए। आस्ट्रेलिया जिस तरह की आक्रामक हाकी भारत के कोच रह चुके रिक चार्ल्सवर्थ के मार्गदर्शन में खेल रहा है, उसे रोक पाना किसी भी टीम के लिए दिल्ली में होने वाले वर्ल्ड कप में बहुत मुश्किल होगा। दिलचस्प बात यह है कि यदि आस्ट्रेलिया को कोई चौंका सकता है, वह भारत ही होगा, क्योंकि दोनों ही आक्रामक हाकी खेलते हैं। भारत का पहला लक्ष्य अपने पूल मैचों में ध्यान लगाकर पूल में टाप थ्री में स्थान बनाने पर होना चाहिए। अगर बात करें भारतीय हाकी टीम की रक्षापंक्ति की तो भारतीय हाकी की रक्षापंक्ति का सरदार कहा जाता है सरदार सिंह को, वह नामधारी हैं इनसे पूरे भारत को काफी ज्यादा उम्मीदें हैं। इस पंथ के मानने वालों का हाकी प्रेम वाकई एक मिसाल है। नामधारियों की टीम के दीदार सिंह और हरपाल सिंह सरीखे खिलाड़ी भारत का ओलंपिक हाकी में प्रतिनिधित्च कर चुके हैं। इस क्रम में भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुमाइंदगी करने वाले बड़े खिलाड़ी के रूप में अब सरदार सिंह का नाम भी जुड़ गया है। वह २००९ के आखिर में साल्टा (अर्जेंटीना) में हुए चैंपियंस चैलेंज वन में ब्रांज मेडल जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य रहे ही, वहां वह टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी रहे। सरदार अपने नाम के अनुरूप ही वाकई मैदान पर अपने बढ़िया खेल से खुद को सरदार साबित करते हैं। सरदार सिंह की एक और खासियत यह है कि वह अब पीछे आक्रामक बैक के रूप में खेलने के बावजूद आगे अपने साथी फारवर्ड को हमले बोलने में वैसी ही मदद करते हैं, जैसी कि वह बतौर सेंटर हाफ करते थे। २०१० में भारतीय हाकी टीम को पटरी पर लाने में सरदार सिंह का रोल खासा अहम होगा। सरदार से भारतीय हाकी टीम को अगले साल के शुरू में पहले वर्ल्ड कप और उसके बात कामनवेल्थ गेम्स में बहुत उम्मीदें हैं। सरदार सिंह के बाद भारतीय हाकी में सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं तो जूनियर स्तर पर भारत के कप्तान रहे दिवाकर राम से। भारत के पूर्वी अंचल के गोरखपुर के दिवाकर राम अपने ड्रैग फ्लिक से दुनिया की मजबूत से मजबूत रक्षापंक्ति को भेदने का दम रखते हैं। ऐसे में भारत की टीम जब २०१० के शुरू में नई दिल्ली में होने वाले वर्ल्ड कप तथा कामनवेल्थ गेम्स में खेलने उतरेगी तो वह अनुभवी ड्रैग फ्लिकर संदीप सिंह, धनंजय महादिक, वी. रघुनाथ के साथ भारत की सीनियर हाकी टीम के लिए गोल करने के एक प्रमुख अस्त्र के रूप में मौजूद रहेंगे। दरअसल इस बार जर्मनी के लिए अपना खिताब बरकरार रखना मुश्किल लगता है। भारत के पूर्व ओलंपियन जगबीर सिंह २०१० में होने वाल हाकी वर्ल्ड कप में भारत के अवसरों की बाबत हाल ही में मीडिया से कहा, भारत की निगाहें पूल में बढ़िया प्रदर्शन पर होनी चाहिए। भारत को अपने पूल में बढ़िया प्रदर्शन कर शुरू की तीन टीमों में जगह बनाने का लक्ष्य बना कर आगे बढ़ना होगा। इससे भारत पर उम्मीदों का दबाव कम होगा। वह वर्ल्ड कप में टाप छह में रहा तो फिर कम से कम चैंपियंस ट्राफी तो खेलेगा। इसके अलावा अपने देश की हाकी को और मजबूती के लिए यह जरूरी है कि हमें दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नैशनल स्टेडियम और शिवाजी स्टेडियम में नए एस्ट्रो टर्फ बिछानी होगी। इससे हाकी को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। आने वाले समय में देश के अलग-अलग हिस्सों में ज्यादा से ज्यादा एस्ट्रो टर्फ लगाए जाने चाहिए। अक्सर भारतीय हाकी की खराब हालत के लिए देश में आधुनिक सुविधाएं न होने का रोना रोया जाता रहा है। भारतीय खिलाड़ी पुराने और खराब पड़ चुके टर्फ पर प्रैक्टिस करते रहते हैें और इससे उनका गेम भी प्रभावित होता है। मगर खिलाड़ियों की यह शिकायत अब जल्दी ही दूर हो जाएगी। टर्फ बिछाने और उसके रखरखाव में बहुत खर्चा आता है, मगर अब समय आ गया है कि हाकी प्रशासन को इसके लिए तैयार होना होगा। उम्मीद है कि २०१० में पंजाब, उत्तर प्रदेश, भोपाल, उड़ीसा, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्यों में हर जगह चार-चार एस्ट्रो टर्फ होगी। यदि ऐसा होता है तो फिर भारतीय हाकी खिलाड़ियों को अपना गेम यूरोपीय खिलाडिय़ों की तरह तेज और ताकतवर बनाने में देर नहीं लगेगी। इतना ही नहीं भारत में हाकी के अच्छे उस्तादों की कभी भी कमी नहीं रही। बात बस अहम पर आकर लटक जाती है। इस मामले में पंजाब सरकार ने परगट सिंह सरीखे भारत के पूर्व ओलंपियन को अपने यहां स्पोर्ट्स डायरेक्टर के पद पर तैनात किया। वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने भारत के पूर्व ओलिंपियन अशोक कुमार सिंह को अपने राज्य में हाकी को संवारने की अहम जिम्मेदारी सौंपी है। उत्तर प्रदेश सरकार को भी इस बारे में पहल करनी होगी। परगट सिंह और अशोक कुमार सिंह, दोनों इन राज्यों में जमीनी स्तर से हाकी की प्रतिभाओं को निखारने में जुटे हैं। निजी तौर पर हाकी खिलाडिय़ों को तैयार करने में धनराज पिल्लै और आशीष बलाल बेंगलुरू में जुटे हैं। यदि देश के पूर्व ओलंपियन वाकई दिल से हाकी का फिर भला चाहते हैं तो उन्हें खुद स्कूल और कालेजों में जाकर अपना अनुभव बांटना होगा। ग्रास रूट स्तर पर किए जा रहे ये बदलाव जल्दी ही पाजिटिव परिणाम देने लगेंगे। पंजाब सरकार ने पंजाब गोल्ड शुरू कर एक अच्छा आगाज किया है। इसके २००९ में इस साल के शुरू में भारत को ओलिंपिक व वर्ल्ड चैंपियन जर्मनी, यूरोप की हालैंड सरीखी शीर्ष टीम तथा न्यूजीलैंड की टीम के खिलाफ खेलने का मौका मिला था। भारत का इसमें उपविजेता रहना इस बात का संकेत है कि भारतीय हाकी फिर से सही दिशा में आगे बढ़ रही है। उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश सरकार इससे प्रेरणा लेकर इंदिरा गांधी इंटरनैशनल गोल्ड कप को फिर शुरू करेगी। भारत में हर साल जितने ज्यादा इंटरनैशनल स्तर के हाकी टूर्नामेंट होंगे, उतना ही ज्यादा भारतीय खिलाड़ियों को दुनिया भर के खिलाड़ियों के खिलाफ खेलने का मौका मिलेगा। जब ज्यादा टूर्नामेंट होंगे तो भारत को हाकी खिलाड़ियों का बड़ा पूल चुनने को मिलेगा। आईपीएल में जिस तरह कारपोरेट कंपनियां शामिल होकर उसे सफलता की नई ऊंचाई की ओर ले जा रही हैं, हाकी में भी अगर ऐसा हो पाता, तो इस खेल का गौरव लौटने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। अच्छी बात यह है कि हीरो होंडा और सेल ने भारत में हाकी के वर्ल्ड कप के लिए बतौर प्रायोजक आकर पहल की है। उम्मीद करनी चाहिए कि उनकी तरह और भी कारपोरेट आगे आएंगे।

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