शादी से पहले सेक्स अपराध नहीं है। लिवइन रहना भी अपराध नहीं है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा और जस्टिस बी. एस. चौहान की बेंच ने २३ मार्च को कहा, जब दो लोग साथ रहना चाहते हैं, तो इसमें अपराध क्या है। कोर्ट ने तो यहां तक कहा कि मिथालजी के मुताबिक भगवान कृष्ण और राधा भी साथ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह बात साउथ की मशहूर ऐक्ट्रेस खुश्बू के एक मामले में कही है। कोर्ट के इस फैसले के बाद लिवइन रिलेशनशिप को लेकर हमारे भारतीय समाज में खासी हलचल है। पर क्या लिवइन के इस मामले में कोर्ट की यह राय भगवान कृष्ण के उस सौंदर्य रूपी प्रेम और लिवइन में रहने वाले लोगों के उस ..... रूपी .... के साथ तुलना उचित है।
हालांकि मेट्रो शहरों में ऐसी मिसालें बढ़ती जा रही हैं, जहां युवक और युवतियां शादी के बंधन में बंध जाने की बजाय साथ रहने लगते हैं। कोर्ट के इस बयान के बाद लगता है कि हमारा समाज बालीवुड की फिल्म दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे के दौर से आगे निकल कर अब सलाम नमस्ते जैसी फिल्मों के दौर में पूरी तरह प्रवेश करने को आतुर है। इधर हमारी अदालतें भी लिवइन को उदार नजर से देखने लगी हैं और ऐसे रिश्ते से जन्मे बच्चों को उनका जायज हक दे रही हैं। इस तरह सोसायटी में लिवइन रिलेशनशिप को लेकर अब लोग हाय तौबा मचाते भी कम लोग ही नजर आ रहे, जैसे आज से दस साल पहले तक था। अलबत्ता ऐसे लोग भी कम नहीं, जो इस ट्रेंड को विवाह और परिवार के ट्रेडिशन के खिलाफ मानते हैं। उनका कहना है कि सदियों से लागू इन परंपराओं के टूटने से सोसायटी में बिखराव पैदा होगा। यानी उनकी नजर में, लिवइन रिलेशनशिप अनैतिक है। जाहिर है, यह एक बड़ा सामाजिक मुद्दा है, जिसका जवाब हमें हमारे भारतीय समाज के अंदर ही खोजना होगा। वैसे महाराष्ट्र सरकार तो लिव इन रिलेशन को कानूनी मान्यता देने के लिए प्रस्ताव पहले ही पारित कर चुकी है। यदि केंद्र सरकार की मंजूरी मिल जाए, तो यह महाराष्ट्र में कानून भी बन सकता है। वैसे भी महाराष्ट्र में लिव इन रिलेशनशिप की संख्या काफी ज्यादा है। गौरतलब है कि २००८ में भी सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि लंबे समय से लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे महिला पुरुष को मैरिड कपल्स की तरह ट्रीट किया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या होंगे इस फैसले के दूरगामी प्रभाव। लिवइन रिलेशनशिप एक तरह से महानगरों में अब कल्चर का हिस्सा बन गए हैं। थोड़ी बहुत हिचक के साथ प्रोग्रेसिव लोगों ने इस रिलेशनशिप को एक तरह से स्वीकार ही कर लिया है। बावजूद इसके अधिकतर भारतीय अभी भी इसके खिलाफ ही हैं। दरअसल, इस रिलेशनशिप को लोग अभी भी मौज मस्ती वाले रिलेशनशिप के रूप में ही देखते हैं। वैसे, काफी हद तक यह सही भी है। आखिर अगर कोई शादी के बाद की स्थिति को सहर्ष स्वीकार करने को तैयार हो, तो भला इस रिलेशनशिप की उसे जरूरत ही क्यों होगी? शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले से, जिसके अनुसार अब लिवइन रिलेशनशिप में पैदा हुई संतान को भी कानूनी वैधता मिलेगी, से तमाम लोग निराश भी हैं। हालांकि कुछ लोगों के लिए यह एक बड़ी खुशखबरी है। जो लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराश हैं, उनकी चिंता यह है कि इससे शादी नामक संस्था पर असर पड़ेगा। आखिर अगर लिवइन इतना आसान होगा, तो लोग भला शादी के फेर में क्यों फंसना पसंद करेंगे?
नीरजमणि जी, आपका लेखन काफी सराहनीय लगा. हिंदी लेखन के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनायें.
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