Monday, June 14, 2010

महाउत्सव शुरू

विश्व कप फुटबाल यानी रोमांच की हदों को पार करने वाला एक ऐसा उत्सव जिसकी दीवानगी समूचे विश्व को अपने आगोश में भर लेती है। महीने भर तक दुनिया के हर खेल प्रेमी की निगाह उस मैदान में टिकी रहेगी जहां हर दिन दिलचस्प मुकाबले होंगे।
विश्व की सर्वश्रेष्ठ ३२ टीमें दक्षिण अफ्रीका में विश्व कप फुटबाल के १९वें संस्करण के लिए कमर कस कर मैदान में उतर चुकी हैं। दुनिया के इस अनूठे महा मेले से जैसे ही परदा उठा फुटबाल महाकुंभ का आगाज हो गया।
हर विश्व कप नए सितारों को जन्म देता है और उन्हें पुराने सितारों के साथ श्रेष्ठता की कसौटी पर तौलता है। मैच के कई यादगार लम्हे इतिहास बनते हैं सो अलग। यदि इस विश्व कप की बात की जाए तो पूरी दुनिया एक तरफ होगी और दूसरी तरफ होंगी लैटिन अमेरिका की दो टीमें ब्राजील और अर्जेंटीना। यदि लैटिन अमेरिकी दंतकथाओं को जरा सा भी मान लिया जाए तो यह बात सिद्ध हो जाती है कि मनुष्य ने पहली बार अपने वंशजों की खोपड़ी से ही खेलना सीखा था। ग्वाटेमाला, मैक्सिको और पेरू की सीमा के बीच अमेजन के घने जंगलों में आज से हजारों वर्ष पहले दक्षिण अमेरिका की तीन सभ्यताएं पनपीं। पहली थी मायंस, दूसरी इंका और तीसरी एजटेक। इतिहास गवाह है कि मायंस के काल में फुटबाल का आविष्कार हुआ। तीनों सभ्यताओं के चिन्ह आज भी वर्तमान पेरू, कोलंबिया, ब्राजील, मैक्सिको, इक्वाडोर और कोस्टारिका में देखे जा सकते हैं।
आज भी हम ब्राजील या अर्जेंटीना का फुटबाल देखते हैं या फिर यूरोपियन देश का फुटबाल , तो फर्क तत्काल समझ में आ जाता है कि फुटबाल दिल से भी खेला जाता है और दिमाग से भी। जो सभ्यता दक्षिण अमेरिका में पनपी थी, उसी का नतीजा है कि ब्राजीलियन और अर्जेंटाइन नाचते गाते दर्शकों की उपस्थिति के बीच वैसा ही दिलों को छूने वाला फुटबाल खेलते हैं जो हम सिर्फ सपनों में ही सोच सकते हैं। गोल करना किसी भी फुटबालर का लक्ष्य होता है, किंतु विपक्षी टीम के किसी खिलाड़ी को छूए बगैर किस प्यार से ऐसा किया जाता है, यदि इसे सीखना हो तो आपको सीधे दक्षिण अमेरिका जाना होगा।
महान फुटबालर पेले ने ही ब्राजील की राष्ट्रीय टीम में आने से पहले सांतोस क्लब के लिए खेलते हुए बाइसिकल किक से गोल दागना सीख लिया था। जगालो जैसे दिग्गज के साथ खेलते हुए पेले ने दुनिया को पहली बार लैटिन अमेरिकी फुटबाल की झलक दिखलाई थी। ब्राजील या अर्जेंटीना विश्व कप चैंपियन बने, यह चर्चा का विषय नहीं है लेकिन यह भी अंतिम सच है कि कोई भी विश्व कप इन दो लैटिन अमेरिकी टीमों के बिना पूरा नहीं हो सकता। आज भी यह हालत है कि ब्राजील के तमाम खिलाड़ी यूरोप में खेलते हैं। इतिहास गवाह है कि इंग्लैंड (१९६६) और फ्रांस (१९९८) के बाद कोई भी यूरोपियन देश मेजबान होते हुए चैंपियन नहीं बन सका है।
१९९४ में अमेरिका में हुए विश्व कप फाइनल में भी ब्राजील चैंपियन बना था। जबकि १९९८ के फाइनल में वह पेरिस में फ्रांस से हार गया था लेकिन उसकी भरपाई ब्राजील ने २००२ में जर्मनी को हराकर पूरी कर ली थी। यदि ब्राजील रिकार्ड पांच बार विश्व कप जीता है तो अर्जेंटीना भी पीछे नहीं रहा है। १९८६ के मैक्सिको विश्व कप में चैंपियन बनने के बाद वह इटेलिया ९० के फाइनल में जर्मनी से अंतिम सेकंड में ० -१ से हार गया था, लेकिन यह वह विश्व कप था, जिसने उस जीनियस मेराडोना की बिगड़़ी हुई छवि देखी थी जो कि १९८६ के विश्व कप के बाद फुटबाल का भगवान बन चुका था।
अर्जेंटीना ने इसके बाद भी अमेरिका से लेकर कोरिया जापान तक (२००२ विश्व कप) अपनी दावेदारी में कोई कमी नहीं आने दी। तब गैब्रियला बातिस्तुता और क्लाडियो कनीजिया जैसे धुरंधर स्ट्राइकर्स की मदद से अर्जेंटीना ने यूरोपीय ताकतों को हिलाकर रख दिया था।
यूरोपियन देशों को देखें तो उसमें से कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह दक्षिण अफ्रीका में आयोजित १९वें विश्व कप को जीतने का हकदार है। इंग्लैंड के साथ १९६६ से ही दुर्भाग्य जुड़ा हुआ है। जर्मनी ने जरूर एक दो बार चमत्कार दिखाए हैं लेकिन इसके सिवा और कुछ बाकी नहीं रह जाता। ४० के दशक में इटली दो बार जीता था। फिर उसे यह सौभाग्य १९८२ के बाद २००६ में जर्मनी में आयोजित विश्व कप में प्राप्त हुआ। अब तक के १८ विश्व कप मुकाबलों में ९ बार लैटिन अमेरिकी देशों के पाले में ही खिताब गया है।
इस बार ब्राजील की टीम कोच डुंगा की पसंद की है, जिसमें युवाओं की भरमार है। पिछले विश्व कप के ब्राजीली सितारे रोनाल्डो, रोनाल्डिनो, राबर्टो कार्लोस तथा कैफू की चौकड़ी अफ्रीका में नजर नहीं आएगी। अलबत्ता सुपर स्टार काका और राबिन्हो पर सबकी निगाहें होंगी। ब्राजील या अर्जेंटीना को यदि कोई यूरोपियन देश चुनौती दे सकता है उसमें सबसे पहला नाम स्पेन व जर्मनी का ही होगा। वैसे तो इंग्लैंड, हालैंड, क्रोएशिया, डेनमार्क, इटली भी इस दौड़ में शामिल हैं। स्पेन व जर्मनी के पास्ा प्रतिभाओं का कभी अकाल नहीं रहा लेकिन दो समस्याओं ने इन दोनों टीमों का पीछा कभी नहीं छोड़ा। पहली फिटनेस और दूसरी दुर्भाग्य। इंग्लैंड के साथ भी दुर्भाग्य ने चोली दामन का साथ निभाया। १९६६ में एक विवादास्पद गोल के बाद विश्व चैंपियन (इतिहास में सिर्फ एक बार) बनने वाले इंग्लैंड ने अभी तक विश्व कप फाइनल में स्थान नहीं बनाया है। यह उस देश की त्रासदी का परिचायक है, जिसकी प्रीमियर लीग दुनिया की सबसे महंगी और आकर्षक मानी जाती है फिर भी उसका स्टार खिलाड़ी डेविड बेखम स्पेन जाकर खेलना पसंद करता है। वर्तमान इंग्लिश टीम की धुरी वायने रूनी के आसपास घूमती है। उनके अलावा फारवर्ड एमिली हेस्की पीटर क्राउच को अहम किरदार अदा करना होगा। मिड फील्ड का दारोमदार जेकोले पर है।

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