Monday, June 14, 2010

राजनीतिक खेल

बसपा से आपराधिक गतिविधियों वाले लोगों को पार्टी से बाहर दिखाने की मूहिम को उस समय करारा झटका लगा जब बसपा सुप्रीमो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने आगामी विधान सभा चुनावों में पार्टी के सभी विधायकों को पुनः चुनाव में प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी। बसपा सुप्रीमो के इस निर्णय से न सिर्फ पार्टी के पदाधिकारियों को धक्का लगा है बल्कि प्रदेश में बसपा की छवि खराब हुई है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कुछ समय पहले पार्टी से आपराधियों को हटाने करने की बात कही थी और उस समय उन्होंने लगभग ५०० आपराधिक छवि के लोगों को निष्कासित कर दिया था लेकिन बसपा से निकाले जाने वालों में उन विधायकों व सांसदों का नाम नहीं था जो आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहे हैं। बसपा में आज भी ऐसे कई विधायक व सांसद हैं जो जेलों में बंद हैं फिर भी बसपा सुप्रीमो ने उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।
बसपा की आपराधियों को पार्टी से निकालने की मुहिम पर इसलिए भी विश्र्वास नहीं किया जा सकता कि बसपा में आज भी ऐसे विधायकों सांसदों की संख्या अधिक है जो अपनी आपराधिक गतिविधियों के कारण ही अपनी पहचान बनाए हुए हैं। बसपा में आज भी डीपी यादव, सुशील सिंह, अंगद यादव, ददन मिश्रा, बादशाह सिंह, रंगनाथ मिश्रा, व वेदराम भाटी जैसे लोग विधायक के पर पद पर विराजमान हैं। वहीं बसपा के कई सांसद ऐसे हैं जिनका आपराधिक इतिहास है और वो संसद की शोभा बढ़ा रहे हैं। बसपा सांसद कपिल मूनि करवरिया, ब्रजेश पाठक, गोरखनाथ पांडेय, कादिर राना, राकेश पांडेय, धनंजय सिंह व हरिशंकर तिवारी के ऊपर आज भी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लग रहे हैं। बसपा के कई ऐसे विधायक व पूर्वमंत्री हैं जो आज भी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाने की वजह से जेलों में बंद हैं। पूर्व मंत्री जमूना प्रसाद निषाद, आनंद सेन यादव, विधायक शेखर तिवारी व सोनू सिंह आज भी जेलों में बंद हैं। जबकि विधायक जितेंद्र सिंह बब्लू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने के आरोपी है। लेकिन वह खूले आम सड़कों पर घूम रहे हैं। बसपा सुप्रीमो के पार्टी का आपरेशन क्लीन करने की छवि को उस समय भी संदेह की नजर से देखा जाने लगा था जब इन्होंने विधान परिषद चुनाव में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था जिनमें से अधिकांश विजयी भी हुए थे। बसपा को इस चुनाव में ३६ से ३४ सीटें प्राप्त हुई थीं। इन सब सीटों पर जीतने वालों में आपराधिक छवि के लोगों की संख्या अधिक रही। यहां तक की विधान परिषद के सभापति गणेश शंकर पांडेय का भी अपराधिक इतिहास रहा है और वह पूर्वांचल के एक गिरोह के सक्रिय सदस्य रहे हैं। फिर भी वह आज माननीय उच्चसदन की सबसे ऊंची कुर्सी पर विराजमान हैं। इसी तरह कई अन्य कुख्यात अपराधी आज विधान परिषद की शोभा बढ़ा रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की यह घोषणा की वह पार्टी से आपराधियों से मुक्त कर देगी हास्यापद सी लगती है।
बसपा से ५०० अपराधिक छवि के लोगों को निकाले जाने पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि मायावती प्रथम उन अपराधी तत्वों के नाम बताएं जिनको उन्होंने पार्टी से निष्काषित कर दिया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता को यह जानने का पूरा हक है। यदि वह उन आपराधियों के नाम नहीं बताती तो उससे साफ है कि उनका आपरेशन क्लीन महज एक दिखावा है।
आपराधियों से पार्टी को मुक्त करने का बसपा सुप्रीमो का यह प्रयास शुरू से ही शंका की दृष्टि से देखा जा रहा था लेकिन यह शंका उस समय और बलवती हो गयी जब मुख्यमंत्री ने यह घोषणा कर दी कि वह सभी पार्टी विधायकों को आगामी चुनाव में टिकट देंगी ऐसा कहकर उन्होंने अपने सभी विधायकों को क्लीन चिट दे दी है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि आपराधिक छवि का मुद्दा उठाकर विपक्ष सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। वह विपक्ष को उनके मकसद में कामयाब नहीं होने देगीं। उन्होंने कहा कि बसपा में आने से पूर्व भले ही विधायकों का आपराधिक इतिहास रहा हो लेकिन बसपा में आने के बाद उन्होंने अपनी आपराधिक गतिविधियां छोड़ दी हैं। उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा है। इसलिए वह विपक्षी नेताओं के जाल में फंसने वाली नहीं है। हालांकि मायावती की इस घोषणा को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है। राजनीतिज्ञों का मानना है कि मायावती ने एक राजनीति के तहत ही यह घोषणा की है कि जिससे विधान परिषद चुनाव में उनको कोई अपमान न झेलना पड़े। हालांकि उत्तर प्रदेश में विधान परिषद चुनाव संपन्न हो गए हैं फिर भी यह माना जा रहा है कि मायावती का यह कदम उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता को दर्शाता है। बहुत से राजनीतिज्ञों का मानना है कि आज भी बसपा में करीब ५० ऐसे विधायक हैं जिनका आपराधिक इतिहास रहा है, अगर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की गई तो वो सरकार के सामने संकट खड़ा कर सकते हैं। सरकार को इसी संकट से उबरने के लिए मुख्यमंत्री ने एक राजनीतिक बयान बाजी की है।
फिलहाल बसपा सुप्रीमो अपने ही विरोधाभाषी बयानों से घिर गयी हैं। पार्टी को आपराधियों से मुक्त करने की इनकी मुहिम पर भी विराम लग गया है। जिससे पार्टी और सरकार की छवि को गहरा धक्का लगा है।

No comments:

Post a Comment