Monday, June 21, 2010

सकते में राजनीति

छोटे दल इतने खतरनाक हो सकते हैं। सभी राष्ट्रीय दलों इसका एहसास उत्तर प्रदेश में होने लगा है। दो साल पूर्व गठित पीस पार्टी आफ इंडिया ने डुमरियागंज विधानसभा उप चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति से राष्ट्रीय दलों को जिस तरह चौंकाया, उससे स्पष्ट है कि आगामी विधानसभा चुनाव में तमाम छोटे राजनीतिक दल महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। हालांकि डुमरियागंज विधानसभा उप चुनाव में बसपा को सफलता मिली है और पीस पार्टी के बढ़ते प्रभाव का उस पर असर नहीं दिखाई दिया है। फिर भी इस चुनाव में पीस पार्टी न सिर्फ नंबर दो पर रही, बल्कि सपा और कांग्रेस को चौथे और पांचवे स्थान पर धकेलने में सफल पीस पार्टी रही।
एक ऐसा राजनीतिक दल न जिसका जन्म ही दो साल पहले हुआ हो इतने अल्पसमय हो, उसने, उपचुनाव में सपा, भाजपा और कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया। उसने शैशव काल में ही दिग्गज राजनीतिक दलों को झटका देते हुए अपनी प्रभावशाली उपस्थिति का अहसास करा दिया। हालांकि पीस पार्टी मुख्य रूप से मुस्लिम संगठन माना जाता है लेकिन उसने डुमरियागंज विधानसभा उपचुनाव में एक ब्राहमण प्रत्याशी को मैदान में उतारकर मुस्लिम-ब्राहमण का समीकरण बनाया व सपा और कांग्रेस को पीछे धकेल दिया। सफलता बसपा को जरूर मिली लेकिन १७.७ प्रतिशत मत प्राप्त करके पीस पार्टी ने अन्य दलों को सदमें में डाल दिया। कांग्रेस जैसी पार्टी को पांचवा स्थान मिलना उसे फिर से सोचने पर मजबूर करता है। यह कांग्रेस के लिए झटका कहा जा सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए वह राहुल गांधी के नेतृत्व में सरकार बनाने का दावा कर रही थी।
राजनीतिक विश्लेषक इन परिणामों को कांग्रेस के मिशन २०१२ के लिए शुभ संकेत नहीं मानते। उनका कहना है कि यह सच है कि जनता कांग्रेस को एक बार फिर पसंद कर रही है लेकिन जहां पर स्थानीय मुद्दों की बात होती है वहां अभी भी लोग छोटे दलों पर निर्भर हैं। इन राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जिस तरह से कभी समाजवादी पार्टी ने यादव, मुस्लिम और ब्राहमण गंठजोड़ से प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाया था और बहुजन समाज पार्टी ने ब्राहमण, मुस्लिम व पिछड़ी जातियों के बूते पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी वैसा करिश्मा छोटे दल शायद ही कर सकें लेकिन वे बड़ी पार्टियों का गड़ित जरूर बिगाड़ सकते हैं। इसी फलसफे के आधार पर पीस पार्टी प्रदेश में जनाधार बढ़ाने का काम कर रही है।
हालांकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी के बढ़ते प्रभाव से सांप्रदा विकल्प मतों के बढ़ने का भी खतरा बढ़ गया है। इसका अंदाजा डुमरियागंज चुनाव से लगाया जा सकता है। जहां भाजपा प्रदेश में जनाधार विहीन होते हुए भी नं.तीन पर रही। पीस पार्टी/ का जन्म मूलतः मुस्लिम समुदाय को ही एक जुट करने और उसको मजबूत करने के लिए हुआ था। पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम एकजुटता से नाराज हिंदूओं का भी ध्रुवी करण हो सकता है। गोरखपुर के सांसद महंत योगी आदित्य नाथ ने हिंदू ध्रुवीकरण के लिए अभियान छेड़ रखा है।
ऐसा माना जा रहा है कि पीस पार्टी के गठन से पूर्वी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक शक्तियों का भी एकजुट होना प्रारंभ हो गया है। पूर्वांचल के सपा और कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि पीस पार्टी का गठन गोरखपुर के सांसद योगी आदित्य नाथ के इशारे पर ही किया गया है। योगी पूर्वांचल में पीस पार्टी के गठन के बाद से हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़का कर हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने की योजना में जुट गए हैं। इन नेताओं का मानना है कि पीस पार्टी का उदय धर्मनिरेपक्ष ताकतों के लिए बहुत बड़ा खतरा बनने जा रहा है और प्रदेश की जनता को इससे सावधान रहना होगा।
पीस पार्टी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को एकजुट करने और इस समुदाय को मजबूत मंच देने के उद्देश्य से हुआ था। पार्टी के संस्थापक डाक्टर अयूब पूर्वी उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण शहर गोरखपुर के सफलतम चिकित्सकों में से एक माने जाते हैं। उनकी पार्टी को २००७ के विधानसभा चुनाव में पैरों का निशान चुनाव चिन्ह मिला था। २००९ के लोकसभा चुनाव के दौरान इसी चुनाव चिन्ह पर इस पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वर्तमान समय में पीस पार्टी का प्रभाव आजमगढ़, सिद्धार्थ नगर, गोंडा, संतकबीर नगर, जौनपुर, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज और बस्ती में है। धीरे-धीरे यह इन क्षेत्रों में जनाधर बढ़ाकर मुस्लिमों को एकजुट करने का काम कर रही है। इससे सपा, भाजपा कांग्रेस सहित अन्य प्रमुख दलों की पूर्वांचल में नींद उड़ रही है। अगर आगामी विधानसभा चुनाव में भी इस पार्टी का यह जादू चला तो सबसे बड़ा झटका कांग्रेस और सपा को लग सकता है। यह दोनो ही दल मुस्लिम वोटों पर निर्भर हैं।
यह भी कहा जा रहा है कि अगर आगामी विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस सत्ता की दहलीज तक नहीं पहुंच पाते तो उसकी एक बड़ी वजह पीस पार्टी सहित अन्य छोटे दल भी होंगे। इसी तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए एक और दल भारतीय समाज पार्टी भी खतरा बन सकता है। ओमप्रकाश राजभर की भारतीय समाज पार्टी पूर्वी उत्तर प्रदेश के राजभर समुदाय के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों में अच्छा खासा प्रभाव रखती है। पार्टी के कर्ता धर्ता ओमप्रकाश राजभर अपने समुदाय को अनुसूचित जाति की श्रेणी में सूचीबद्ध कराने का भी प्रयास कर रहे हैं, इससे वह राजभर समुदाय के बीच यह जताने का प्रयास कर रहे हैं । पूर्वी उत्तर प्रदेश के कम से कम १२ विधानसभा क्षेत्रों में राजभर समुदाय की अच्छी खासी आबादी है। जिससे आगामी विधानसभा चुनाव में सपा, कांग्रेस, भाजपा और बसपा को मुसीबत खड़ी हो सकती है। अगर आगामी चुनाव में भारतीय समाज पार्टी को कुछ सफलता मिलती है तो वह सपा, बसपा या कांग्रेस से समझौता करने में पीछे नहीं रहेगी। इसकी वजह उनके अपने हित और राजनीतिक समीकरण हैं। डुमरियागंज में पीस पार्टी को मिली ताजा सफलता के पीछे भारतीय समाज पार्टी के योगदान को भी अहम माना जा रहा है । भारतीय समाज पार्टी ने डुमरियागंज विधानसभा उपचुनाव में पीस पार्टी का समर्थन किया था।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इन छोटे दलों की प्रदेश में बढ़ती लोकप्रियता बड़े दलों के लिए मुसीबत बन रही है। इनका मानना है कि छोटे दलों का अपना खस वोट बैंक है, जिसे अपने हिसाब से वह चाहें जिधर प्रयोग कर सकते हैं। समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन छोटे दलों के बढ़ते जनाधार का खामियाजा सपा को सबसे ज्यादा भुुगतना पड़ा है। मुख्य रूप से पीस पार्टी के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों में नया ध्रुवीकरण होने से सपा का प्रदर्शन लगातार धरातल की ओर जा रहा है। २००९ के लोकसभा चुनाव के दौरान भी यही तमाम छोटे-छोटे दल समाजवादी पार्टी के लिए खतरा बने थे। राजनीतिक विश्लेषकों को यह भी लगता है कि यह प्रवृत्ति प्रदेश की राजनीति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। अब जातिवाद की राजनीति के अगले चरण में उपजाति और समुदाय की भी रणनीति अमल में लायी जानी शुरू हो चुकी है। इससे समाज में विभाजन की रेखा तो खिंचेगी ही लेकिन तात्कालिक लाभ की प्रवृत्ति को भी प्रोत्साहन मिलेगा। सामाजिक वैज्ञानिक डा. एस के सिंह कहते हैं कि प्रमुख राजनीतिक दलों अपने राजनीतिक मतभेद भुलाकर देश और प्रदेश के हितों को तय करना चाहिए। अगर अब भी ये सचेत न हुए और इन दलों की अनदेखी की गयी तो एक दिन यही बड़े दलों के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं।

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