Tuesday, April 13, 2010

आसान नहीं डगर

योग गुरु बाबा रामदेव ने भी राजनीति में प्रवेश की घोषणा कर दी है। उन्होंने अपनी पार्टी का नामकरण भी कर लिया है। उनकी पार्टी होगी भारत स्वाभिमान पार्टी। ऐसे में सहज सवाल उठता है कि क्या वे राजनीति में सफल हो पाएंगे या फिर अन्य बाबाओं की तरह उनका भी हाल होगा। बाबा रामदेव एक सफल योग गुरु हैं। वे हरियाणा में १९५३ में पैदा हुए। लकवा से पीड़ित होकर वे योग की ओर आगे बढ़े। योग द्वारा उनके लकवे का इलाज हो रहा था। वे उससे मुक्त भी हो गए। इसी दौरान वे इस विद्या में पारंगत हो गए फिर उन्होंने लोगों को मुफ्त योग सिखाना शुरू कर दिया। योग का प्रचार करते-करते और लोगों को बीमारियों से मुक्ति दिलाने की पहल के साथ ही उन्होंने भारी प्रसिद्धि हासिल कर ली। इस प्रसिद्धि का कारण उनके द्वारा अपने योग प्रचार में टीवी चैनलों का इस्तेमाल था। आयुर्वेद की दवाओं और घरेलू नुस्खों का योग के साथ साथ प्रचार करके बाबा रामदेव करोड़ों लोगों के बीच में परिचित चेहरा बन गए। यदि उन्हें लगता है कि वे पूरे देश में इतने ज्यादा प्रचारित हो गए हैं कि अगर अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ते हैं तो भारी सफलता हासिल होगी। वे राजनीति में सार्थक हस्तक्षेप चाहते थे इसलिए अपने योग शिविरों में उन्होंने राजनीतिज्ञों को आने का मौका दिया। नेताओं के पास लंबे चौड़े निमंत्रण पत्र भेजकर उन्हें बुलाया जाता। सहारा समूह से नजदीकी के बाद वे लालू व मुलायम के प्रभाव में आये। लालू ने तो समय-समय पर बाबा रामदेव का जमकर नगाड़ा बजाया फिर भी बाबा की बेचैनी बनी रही। इसलिए पिछले आम चुनाव से ठीक पहले उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की शुरुआत कर दी। योजना तो सीधे चुनाव मैदान में उतरने की थी लेकिन कम समय के कारण तैयारी नहीं हो पायी। जोधपुर में आयोजित सभा में उन्होंने स्वीकार भी किया था कि तैयारी अधूरी थी। उनका एक ही संदेश है कि सदस्य बनाइये और प्रशिक्षण दीजिए। लक्ष्य है कि दो करोड़ सक्रिय सदस्य बन जाएं। इसके लिए वे देश में ११ लाख योग कक्षाओं के नियमित आयोजन का आवाहन कर रहे हैं।इन कार्यक्रमों में उनकी हां में हां मिलाने के लिए उपकृत भक्तों का हुजूम भी दिख रहा है। बाबा उत्साहित हैं। उनका उत्साह छिपाये नहीं छिप रहा। वे कहते हैं कि कोई समय सीमा तो नहीं है लेकिन उनका राजनीतिक आधार अगले दो साल में तैयार हो जाएगा। यानी, २०१४ के चुनाव में बाबा रामदेव भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे। फिलहाल उनकी इस घोषणा से तो यही लगता है कि वह वही गलती कर रहे हैं जो करपात्री जी महराज ने सालों पहले की थी। जिन राजनीतिज्ञों को हटाने के लिए बाबा रामदेव घूम-घूम कर प्रवचन दे रहे हैं, उन्हीं राजनीतिज्ञों की बदौलत वे अब तक अपने योग शिविरों को चमकाते रहे हैं। राजनीतिज्ञों को यह अहसास होते देर नहीं लगेगा कि बाबा अब उनके क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में वे उनके साथ क्या व्यवहार करेंगे यह तो आने वाला समय बताएगा। प्राणायाम के चमत्कार में बाबा रामदेव के प्रभाव में आये सामान्य जन उनका राजनैतिक संदेश भी मानेंगे इसकी क्या गारंटी है। बाबा रामदेव के आज करोड़ों प्रशंसक हैं। उनके अनुयायियों की संख्या भी लाखों में हैं। उनका अपना योग और आयुर्वेद का साम्राज्य है जो अरबों रूपये का है। उनका यह साम्राज्य दिनों दिन फैलता जा रहा है। ६००० लोगों को तो उन्होंने अपने उद्योग में सीधे-सीधे नौकरी दे रखी है। उनके व्यापारिक साम्राज्य से रोजगार के अन्य अवसर भी पैदा हुए हैं। वे करपात्री महाराज से अच्छी स्थिति में हैं, जिन्होंने राम राज्य परिषद बनाकर राजनीति में प्रवेश किया था। वे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से भी बेहतर स्थिति में हैं, जिनकी राजनीति श्रीमती इंदिरा गांधी पर निर्भर थी। उनकी अपील किसी विशेष संप्रदाय अथवा जाति तक सीमित नहीं है। वे कोई सांप्रदायिक अथवा जातिवादी मसला उठा भी नहीं रहे। उन्होंने देवबंद के जमात-ए-उलेमा का निमंत्रण स्वीकार कर उनके मंच से हजारो मुस्लिम धार्मिक नेताओं को संबोधित किया और योग पर प्रवचन देकर उनकी वाहवाही हासिल की इसके बावजूद उनकी राजनैतिक यात्रा आसान नहीं है। उन्होंने अपने इर्द-गिर्द जो आभा खड़ी की है, उसके पीछे अनेक मुख्यमंत्रियों और केन्द्र के मंत्रियो से उनकी नजदीकी प्रमुख है। लालू प्रसाद यादव से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी उनके मुरीद हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा से भी उनके अच्छे संबंध हैं।

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