Tuesday, April 13, 2010

फिर धड़कने की तैयारी

6ब्बीस साल से बंद लखनऊ के हुसैनाबाद घंटाघर की घड़ी फिर से टिक-टिक करने वाली है। कोशिश चल रही है कि देश के सबसे ऊंचे घंटाघर को फिर से नया लुक दिया जाए। संयुक्त प्रांत ( तब उत्तर प्रदेश का यही नाम था) के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जार्ज कोपर के सम्मान में हुसैनाबाद ट्रस्ट ने १८८२ से १८८७ के बीच इसका निर्माण कराया। ब्रिटिश आर्किटेक्ट रिचर्ड रासकेल बेयन ने रिष स्टाइल में इसे डिजाइन किया था। इसमें जो घड़ी लगी है वह तकनीकी दृष्टि से विश्र्व की तीन नायाब घड़ियों में से एक मानी जाती है। यह घड़ी कितनी कीमती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि घंटाघर के पूरे भवन के निर्माण पर जब नब्बे हजार रुपये खर्च हुए थे तब इसमें लगायी गयी घड़ी की कीमत २६ हजार ९ सौ ३३ रुपये थी। गन मेटल से निर्मित इस घड़ी में पांच बड़े घंटे लगे हैं, जिनकी आवाज तीन किलोमीटर दूर तक सुनायी पड़ती थी।हुसैनाबाद घंटाघर की घड़ी १९८४ तक लगातार चलती रही। १९८४ में यह खराब हो गयी। ब्रिटेन की फर्म जे.डब्ल्यू बेंसन द्वारा निर्मित इस घड़ी को स्केपमेंट और पेंडुलम के जरिये इस तरह से संबद्ध किया गया था कि यह पच्चानवे साल तक लगातार चलती रही। इस घड़ी के खराब होने के बाद इसे ठीक करने के प्रयास हुए। कोई ऐसा कारीगर नहीं मिला जो इसे ठीक कर पाता। १९९९ से २००३ तक कारीगर तलाशने के बाद बरेली की फर्म शब्बन एंड संस ने इसे ठीक कर देने का ठेका लिया। फर्म ने इस एवज में नौ लाख रुपये मांगे। बरेली की इस फर्म को ढाई लाख रुपये एडवांस भी दिए गये लेकिन वह इस घड़ी को ठीक नहीं कर पायी। इसी बीच घड़ी का दिल माना जाने वाला पुर्जा स्केपमेंट कहीं खो गया। इसके बाद हुसैनाबाद ट्रस्ट ने कोलकाता की एंग्लो रिक्श वाच कंपनी सहित कई विशेषज्ञ फर्मों और विशेषज्ञों से घड़ी को दोबारा चालू करने पर विचार विमर्श किया। कोई भी इस बात पर एकमत नहीं हो पाया कि यह घड़ी फिर से चल पाएगी या नहीं। लखनऊ की शान माने जाने वाले हुसैनाबाद के ऐतिहासिक घंटाघर की घड़ी को ठीक करने में जब विशेषज्ञों ने हाथ खड़े कर दिए तब आईआईटी कानपुर के बीटेक मैकेनिकल अखिलेश अग्रवाल और मर्चेंट नेवी में सेवारत कैप्टन परितोष चौहान ने इसे ठीक करने का बीड़ा उठाया। इन्होंने घड़ी के मूल दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद गन मेटल से ही घड़ी के खो चुके स्केपमेंट को फिर से तैयार कर लिया। स्केपमेंट तैयार हो जाने के बाद अब यह दिक्कत सामने है कि कोई यह बताने वाला भी नहीं है कि वह स्केपमेंट घड़ी में लगाकर उसे चलाने का रिस्क लिया जाए या नहीं। हुसैनाबाद ट्रस्ट अब इस स्केपमेंट का वीडियो तैयार करवाकर ब्रिटिश आर्कियोलाजिकल सोसायटी को भेज रहा है ताकि वहां से विशेषज्ञों की राय ली जा सके। लखनऊ के अपर जिलाधिकारी और हुसैनाबाद ट्रस्ट के सचिव ओम प्रकाश पाठक ने बताया कि लखनऊ में तैयार किए गए स्केपमेंट के वीडियो को अगर ब्रिटेन के विशेषज्ञों से हरी झंडी मिल जाती है तो इसकी मरम्मत का काम शुरू कर दिया जाएगा। घड़ी की मरम्मत के काम में पंद्रह लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। हुसैनाबाद ट्रस्ट ने घड़ी ठीक हो जाने की संभावना के बाद घंटाघर में आयी दरारें और जीर्ण शीर्ण हो चुकी उसकी सीढ़ियों की मरम्मत का फैसला भी कर लिया है। पीडब्ल्यूडी के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता वी.के. श्रोतिया घंटाघर की मरम्मत में तकनीकी सलाह देंगे। घंटाघर की सीढ़ियों और इसकी दरारों को ठीक करने में तीन लाख रुपये का खर्च आएगा। घंटाघर को फिर से उसके पुराने स्वरूप में लौटाने पर खर्च होने वाले १८ लाख रुपये का व्यय हुसैनाबाद ट्रस्ट वहन करेगा। बीस फुट चौड़ाई और बीस फुट लंबाई के वर्ग पर निर्मित किए गए हुसैनाबाद घंटाघर की ऊंचाई २१२ फुट है। घंटाघर के शीर्ष पर पीपल का बगुला लगाया गया है, जो हवा की दिशा बताता है। ऐतिहासिक आसिफी इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच स्थित घंटाघर पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र है।

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