Tuesday, December 29, 2009

बढ़ा भारत का सम्मान

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत को इस साल कई महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल हुईं। कुछ देश भारत को तंग करते रहे तो रूस व अमेरिका की प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह की यात्रा ने अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति के नये द्वार खोले पाकिस्तान तो भारत विरोधी गतिविधियों की पूरे वर्ष रोटी खाता रहा। नवोदित लोकतांत्रिक देश नेपाल के नखरे भी बढ़े हैं। श्रीलंका के भारत के साथ अच्छे संबंध हैं, हालांकि उसका भी धीरे-धीरे चीन की तरफ झुकाव आने वाले समय में भारत के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। पाकिस्तान का भारत से भिड़े रहना उसका स्वभाव बन चुका है। वर्ष २००९ में चीन को भारत का प्रतिद्वंदी कहा जा सकता है। अमेरिका की स्थिति है कि बूझो तो जानो। कमोबेश विश्व के सभी देशों से हमारे कूटनीतिक संबंध नरम-गरम बने रहे। आजाद होने के बाद अब तक भारत रक्षात्मक उपाय पर जोर देता रहा आक्रामक नहीं। वैश्विक संबंधों के परिदृश्य में इन दिनों काफी बदलाव आया है। ऐसे में नये कूटनीतिक समीकरणों की जरूरत है। फिलहाल विश्व स्तर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कूटनीतिक चालों सफल कही जा सकती है। चीन की पैंतरेबाजी और अमेरिका की कूटनीति के बीच में मनमोहन ंसिह ने भारतीय विदेश नीति का व्यापक और सफल प्रयोग जारी रखा है। चीन की यात्रा करके उन्होंने अमेरिका को संकेत दिया कि हम निरीह नहीं हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने चीन की यात्रा कर जब नयी पहल की तब उसके बाद मनमोहन सिंह अमेरिका जा पहुंचे। इतना ही नहीं रूस की यात्रा के बाद उनका मनोबल भी काफी बढ़ा। भारत ने कनाडा, रूस व फ्रांस से असैच समझौता किया है, यह उसकी बड़ी कामयाबी है। अब विश्व की निगाहें भारत पर हैं और यही चीन को खौफजदा करता है। शायद इसीलिए पूरे वर्ष चीन भारत को परेशान करता रहा। रूस भारत का पुराना और विश्वसनीय मित्र है। मनमोहन सिंह ने चीन और अमेरिका को एक साथ जता दिया कि हम अकेले नहीं हैं। दरअसल अमेरिका के बढ़ते वर्चस्व को मान सब देश रहे हैं लेकिन स्वीकार कोई नहीं रहा। दक्षिण कोरिया हो या अफगानिस्तान, इराक हो या ईरान ये अमेरिका को अगर हल्के में नहीं ले रहे तो अपना आका भी मानने को तैयार नहीं हैं। रूस की यात्रा के दौरान मनमोहन सिंह ने कई ऐतिहासिक फैसले किये। दोनो देशों के बीच सैन्य तकनीकी सहयोग को २०२० तक जारी रखने के अलावा और भी कई समझौतों को लागू किया गया। मनमोहन सिंह का महत्व इसी से आंका जा सकता है कि वे न सिर्फ ओबामा प्रशासन के पहले राजीकय अतिथि बने बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उनसे अफगानिस्तान के हालातों पर चर्चा की। दोनों ने दूरभाष के जरिये जो विचार विमर्श किया इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति के नजरिये से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अमेरिका ने भारत से उस वक्त सलाह ली जब अमेरिका, पाकिस्तान अफगानिस्तान नीति निर्धारित करने की निर्णायक स्थिति में है। अमेरिका और ईरान एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। अब भारत ने ईरान के प्रति हमदर्दी को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। हाल ही में उसने अमेरिका के दबाव में अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में ईरान के खिलाफ वोट दिया था। इसके बाद भारत ने ईरान से नयी कूटनीतिक पहल जारी की। यह उचित भी है। भारत ने अमेरिकी वर्चस्व को दरकिनार करते हुए भारतीय कम्पनियों को ईरान में निवेश करने की अनुमति दे दी है। गौरतलब है कि अमेरिका और यूरोप के कई दिग्गज देशों के प्रतिबंध की वजह से ईरान में कोई निवेश नहीं करता है। ईरान, पाकिस्तान, भारत गैस पाइप लाइन मुद्दे को भारत पुनः अमली जामा पहनाने की पहल करने जा रहा है। हमारे पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका और नेपाल में अब यह किसी के साथ शत प्रतिशत दावा नहीं किया जा सकता कि वह हमारा किसी प्रकार से अहित नहीं कर रहा है। नेहरू युग की एक विशेषता यह थी कि वह राजनयिक दोस्ती निभाना जानते थे। पहली बार चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने ही नेहरू को दोस्ती में दगा दिया था और उसका वे सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके। अब तो सभी जानते हैं कि मित्रता अपने फायदे के लिये की जाती है। बांग्लादेश में जबसे बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी का शासन स्थापित हुआ हैे भारत को राहत मिली। प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत से हर प्रकार की मदद मिलने की उम्मीद है। इसीलिए वे अपनी तरफ से अच्छे संबंधों की पहल कर रही हैं। बांग्लादेश ने उल्फा के सरगना अरविंद राजखोआ के समर्पण में भारत को मदद दी। इससे न सिर्फ दोनो देशों के बीच संबंधों के एक नये युग की शुरूआत होगी बल्कि पूर्वोत्तर में भी शांति स्थापित होगी। हाल ही में बांग्लादेश पुलिस ने उल्फाके प्रमुख नेता को गिरफ्तार किया और बांग्लादेश के अधिकारियों ने उसे भारत को सौंप दिया। इससे एक तरफ उल्फा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भय पैदा होगा, वहीं पाकिस्तान पर भी दबाव पड़ेगा कि वह भी अपने यहां के उन आतंकवादियों को भारत के सिपुर्द कर दे जो मुंबई हमले में आरोपित हैं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ०९ में १८ दिसंबर तक भारत की यात्रा पर आयीं। चीन के साथ संबंधों की नाजुक डोर पर हम चल रहे हैं। चीन बार-बार अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके भारत को उकसा रहा है पाकिस्तान साल भर खुद आतंकवाद से जूझता रहा लेकिन उसने २६/११ के आतंकियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। नेपाल से भी लुका छिपी जारीरही।

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