Tuesday, December 29, 2009

कहां गयी सादगी?

वर्ष २००९ में कांग्रेस ने जोर शोर से फिजूलखर्ची रोकने के लिए सादगी अभियान चलाया पर कुछ ही दिनों में उन्हीं के पार्टी के लोगों ने उसकी हवा निकाल दी। कांग्रेस ने जो अभियान चलाया उसमें पार्टी के मंत्री, सांसदों एवं विधायकों ने गंभीरता पूर्वक भागीदारी नहीं की। उन्होंने राहुल गांधी व सोनिया के सादगी अभियान की हवा निकाल दी। कांग्रेस की मितव्ययिता की नौटंकी का अपने ही मंत्रियों पर कोई असर नहीं हुआ। सबसे ज्यादा छीछालेदर मची विदेश राज्य मंत्री शशि थरुर के बयानों को लेकर अधनंगे, भूखे लोगों के इस देश में पिछले तीन सालों में केंद्रीय मंत्रियों ने विदेश यात्राओं पर ३०० करोड़ रूपए तो घरेलू यात्राओं पर ९४.४० करोड़ रुपये खर्च किये। इतना ही नहीं कांग्रेस के नेताओं को पार्टियां करने, चार्टर्ड प्लेन किराये पर लेने में भी संकोच नहीं रहा। कांग्रेस से जुड़े केंद्रीय मंत्री अगर अपने संसदीय क्षेत्र में भी जाते हैं तो वे चार्टर्ड प्लेन या हेलीकाप्टर का उपयोग करते हैं। एकाध सरकारी कार्यक्रमों का आयोजन महज रस्म अदायगी के लिए हुआ।कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी भले ही हवाई जहाज की बीस सीटें बुक करवाकर इकोनामी क्लास में और युवराज राहुल गांधी ने शताब्दी की एक बोगी बुक कराकर मितव्ययिता बरतने का संदेश दिया पर उनके अपने मंत्री ही पूरे वर्ष इसका माखौल उड़ाते दिखे। केंद्रीय सचिवालय से उपलब्ध आंकड़े बयां करते हैं कि २००६-०७ एवं २००८-०९ के वित्तीय वर्ष में कैबिनेट मंत्रियों ने अपनी विदेश यात्राओं पर १३७ करोड़ रुपए फूंके। सबसे अधिक राशि २००७-०८ में ११५ करोड़ रुपए खर्च की गयी। कोई मंत्री या पार्टी पदाधिकारी दूसरे शहर की जब यात्रा करता है तो वह सरकारी गेस्ट हाउस के बजाय महंगे होटलों में रुकने में अपनी शान समझता है। इन होटलों का बिल कहीं न कहीं जनता की जेब पर असर डालता है। मजे की बात तो यह है कि मंत्रियों के साथ अफसरान और उनका परिवार भी तर जाता है। जब भी मंत्री यात्रा पर जाते हैं, उनके साथ महकमे के अफसरान भी हो लिया करते हैं। अगर विदेश यात्रा की बात आती है तो अफसरान अपने परिजनों को भी ले जाने से नहीं चूकते। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एक मर्तबा विदेश यात्रा के दौरान सूबे के एक अफसर को विदेश में ही पकड़ लिया था। बाद में सवाल-जवाब करने पर पता चला कि उक्त अधिकारी बिना विभागीय अनुमति के विदेश में सैर कर रहे थे। चूंकि मामला बडे़ ़अधिकारी का था सो दबा दिया गया। आश्चर्य की बात तो यह है कि २००६ से २००९ तक देश की सोलह संसदीय समितियों ने स्टडी टूर के मद में ही दस करोड़ रुपए हवाई यात्रा और फाइव स्टार होटल को दे दिए। हवाई यात्रा और आलीशान होटल में रुकना आज मंत्रियों का स्टेटस सिंबल बन चुका है। जब भी कोई मंत्री या अफसर गांव में रात बिताने की नौटंकी करने की जुर्रत करता है तो वह अपने साथ जेनरेटर सेट ले जाना कतई नहीं भूलता, क्योंकि वह जानता है कि रात को गांव में बिजली के बिना मच्छर उसे खा जाएंगे। इस सब से आजिज आ चुके जनसेवक फिर हवाई जहाज की इकोनामी क्लास को मवेशी का बाड़ा यानी केटल क्लास का दर्जा देने से भी नहीं चूकता है। कांग्रेस के जनसेवक अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश को कितनी तवज्जो देते हैं, यह बात तो उनके मितव्ययिता के निर्देश के पालन में समझ आ जाती है। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष ने जनसेवकों को अपने वेतन के बीस फीसदी हिस्से को राहत कोष में जमा कराने के निर्देश दिए थे पर उनकी इस अपील का जनसेवकों पर कोई असर नहीं हुआ। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी अपील पर अपील करती रहीं हैं, किन्तु जनसेवकों की मोटी चमड़ी पर उसका कोई असर नहीं हुआ।यही हाल अन्य पार्टियों के नेताओं का भी हैं। गांधी जी पहले सूट-बूट पहनते थे लेकिन चंपारन में एक गरीब महिला को धोती में लिपटा दिख इतना व्यथित हुए कि शेष जीवन धोती पहन कर ही गुजार दिया। उसी गांधी के देश में सादगी अब दिखावे लायक भी नहीं रह गयी।

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