Sunday, July 11, 2010

बदहाल बुंदेलखंड

बुंदेलखंड में बेतहाशा गर्मी की वजह से न सिर्फ पीने के पानी की किल्लत हो गई है। बल्कि नदियां सूखने की वजह से बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ा है। तपिस और झुलसा देने वाली गर्मी ने बुंदेलखंड के कई जिलों में सूखे जैसे हालात पैदा कर डाले हैं। हैरत इस बात को लेकर है कि राज्य सरकार गर्मी से उत्पन्न संकट को दूर करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें तो बना रही है, लेकिन धरातल में कारगर न हो पाने से लोगों की दिक्कत बढ़ी है।
आम तौर पर पथरीले बुंदेलखंड में गर्मी के मौसम में धरती जलती है लेकिन इस साल तो तापमान ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले पारा ५० डिग्री के पार तक पहुंचा और गर्मी ने लोगों को बेहाल कर डाला। बुंदेलखंड में इस साल अप्रैल से ही आसमान ने जहां आग बरसाई वहीं धरती भी तवे की तरह लाल रही। इस साल अभी भी बुंदेलखंड वासियों को अच्छे मानसून का इंतजार है। अगर इस वर्ष भी वर्षा अच्छी न हुई तो बुंदेलखंड लगातार पांचवे वर्ष भी सूखा ही झेलेगा। लोगों का पलायन होगा औ भूख से मौते होंगी। पिछले मौसमों में लगातार कम बारिश के चलते जमीन के नीचे के जल स्तर में भारी गिरावट आई, नदियों का भी प्रवाह थम सा गया। गर्मी ने इस संकट को और बढ़ाया और हालात भयावहता की ओर है। शहर ही नहीं बुंदेलखंड के सैंकड़ों गांव पानी के संकट से जूझ रहे हैं। पानी के इस संकट के लिए विशेषज्ञ सरकार की नीतियों को ही जिम्मेदार मानते हैं। बुंदेलखंड में जिस तरीके से नदियों का दोहन किया गया और पारंपरिक जल स्रोतों पर तवज्जों नहीं दी गयी। उसकी वजह से बुंदेलखंड में जल संकट पैदा हो गया है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई  हो या नदी और पहाड़ों का खनन की वजह से पर्यावरण संतुलन बुरी तरह गड़बड़ा रहा है। नतीजा यह कि सूरज की तपिश की वजह से आम जनता का जीना हराम हो गया है गर्मी के हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ ध्यान नहीं देती पिछली बार पानी की समस्या से निपटने के लिए साढ़े सात सौ करोड़ बुंदेलखंड को मिले थे। ये रुपया कहां गया किसी को पता नहीं है। इस बार बुंदेलखंड को १२ सौ करोड़ का झुनझुना मिला है लेकिन अगर काम के नाम पर कुछ हो रहा है तो वह सियासत है। समूचे बुंदेलखंड हलक से लेकर खेत तक प्यासा है। जानवरों के चारे का संकट है। तभी तो भूगर्भ जल निदेशालय ने शहर वासियों को पानी से होने वाली परेशानी से चेताया है। रिपोर्ट के अनुसार जल दोहन से बांदा से प्रतिवर्ष भूगर्भ जलस्तर ६५ सेंटीमीटर गिर रहा है जबकि झांसी में ५० सेंटीमीटर गिर रहा है। लखनऊ ५६ तो कानपुर ४५ है।
बुंदेलखंड विन्ध्य पठारी क्षेत्र में स्थित बांदा दक्षिणी पुनिनसुलर क्षेत्र में सेंडीमेंटस शैल समूह के अंतर्गत आता है। प्रदेश में सबसे गहराई वाला जल स्तर क्षेत्र बेतवा और यमुना की घटियों में पाया जाता है। इसमें बांदा चित्रकूट, हमीरपुर जालौन, झांसी सहित इलाहाबाद हैं। बुंदेलखंड में पानी की समस्या नई नहीं है। यहां भूगर्भ है। जल सीमित है क्योंकि धरती के नीचे की बनावट ही ऐसी है कि बहुत बड़ा जल का स्टोर नहीं हो सकता है। स्थिति तब भयावह हो जाती है जब हम लगातार भू गर्भ जल का दोहन करते आ रहे हैें और उसके रिचार्ज की उचित व्यवस्था हमारे पास नहीं है। साथ ही कम होती वर्ष बड़ा संकट है। केन नदी जनवरी में ही सूखने की स्थिति में आ जाती है। गर्मी के पांच महीने जुलाई तक पानी का घोर संकट रहता है। पारंपरिक जलस्रोत सूख जाते हैं। पिछले छह सालों से कम वर्षा बांदा में सूखे काल का प्रमुख कारण है। २००३ से २००९ तक कुल ३७२ दिन बारिश हुई। निरंतर गहराता जलसंकट जन जागरूकता, सामूहिक प्रयासों के अभाव के कारण पैदा हुआ है।
बुंदेलखंड में ज्यादातर क्षेत्र असिंचित होने के कारण बिना बुवाई के रह जाता है। सैंकड़ों लोग प्रदूषित पानी से उपजी बीमारियों के कारण मौत की नींद सो जाते हैं। कुछ क्षेत्र में हाथ, पैर में लकवा, आंखों की अंधता, पथरी, बवासीर, रक्त की कमी, टीवी आदि से ग्रसित रहते हैं। केन नदी को वीभत्स बनाने वाला चाहे करिया नाला हो या मंदाकिनी को प्रदूषित करने वाला सीवर देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदी में कितनी तादाद में जहर प्रतिदिन घुल रहा है। बहरहाल रसूखदार मंत्रियों के ग्रह जनपद से लेकर पूरे बुंदेलखंड में एक दर्जन लाल बत्तियां भले ही अपनी प्यास बुझा रही हों लेकिन गिरते जल स्तर ने बुंदेलखंडवासियों के हलक सूखा दिये हैं। बुंदेलखंड में सरकारी खजाने से जारी हुयी करोड़ों रुपये का इस्तेमाल जलसंचयन, जल प्रबंधन नहरों, तालाबों और कुओं की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था। साथ ही इन सभी स्रातों में बरसात का पानी एकत्र करने की योजना थी मगर न तो पानी एकत्र किया गया। न ही नहरों की तालाबों की सफाई हो सकी। आखिर सरकार का रुपया कौन डकार गया केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक डा. डीएस पाण्डेय साफ कहते हैं कि चित्रकूटधाम मंडल के बांदा जनपद के आठ विकास खंड के चार हमीरपुर के सात में चार महोबा के पांच में तीन व चित्रकूट के पांचों विकास खंडों में जल स्तर एक से तीन मीटर नीचे खिसक गया है। केन बेतवा गठजोड़ से पहले अब भू गर्भ जल स्तर को बचाने की आवश्यकता है।
बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पोखर तालाब और सरोवर जीवन पालक हैं जहां पशुपक्षी ही नहीं आदमी भी अपनी प्यास बुझाता है। बीते दो दशक में अतिक्रमण के चलते तालाबों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप में कमी आई है। पटेल की माने तो डेढ़ करोड़ हजार तालाबों में करीब पांच सौ ही तालाबों में पानी है। सूरज की भीषण तपन से जहां जीव जन्तु बेहाल हैं वहीं जानवर प्यास बुझाने को जंगलों में भटक रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में कुल १५५३ तालाब हैं। जिसमें एक हजार सूख चुके हैं। बानगंगा नदी, कडैली नाला एवं बदरहा नाला के सूखने से पहाड़ों की तलहटों में बसे कुरुह, बरकठा, जरैला, राजाडाडी, खेरियां, महुई, कुलसारी एवं छतैनी गांवों में पेयजल संकट बढ़ा है।

1 comment:

  1. अच्छी रिपोर्ट ,धन्यवाद

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

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