Wednesday, July 21, 2010
पर्यावरण का अहम हिस्सा रहे गिध्द अब इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के कगार पर हैं, पर बात गिध्दों तक ही खत्म होती नजर नहीं आती। कौवों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है। ठीक इसी प्रकार हमने अपनी दुनिया बसाते हुए चिड़ियों के घर उजाड़ दिए और उनके नए बसेरे का कोई इंतजाम भी नहीं किया। ............................................... आखिर क्यों ?
Sunday, July 11, 2010
बदहाल बुंदेलखंड
बुंदेलखंड में बेतहाशा गर्मी की वजह से न सिर्फ पीने के पानी की किल्लत हो गई है। बल्कि नदियां सूखने की वजह से बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ा है। तपिस और झुलसा देने वाली गर्मी ने बुंदेलखंड के कई जिलों में सूखे जैसे हालात पैदा कर डाले हैं। हैरत इस बात को लेकर है कि राज्य सरकार गर्मी से उत्पन्न संकट को दूर करने के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें तो बना रही है, लेकिन धरातल में कारगर न हो पाने से लोगों की दिक्कत बढ़ी है।
आम तौर पर पथरीले बुंदेलखंड में गर्मी के मौसम में धरती जलती है लेकिन इस साल तो तापमान ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले पारा ५० डिग्री के पार तक पहुंचा और गर्मी ने लोगों को बेहाल कर डाला। बुंदेलखंड में इस साल अप्रैल से ही आसमान ने जहां आग बरसाई वहीं धरती भी तवे की तरह लाल रही। इस साल अभी भी बुंदेलखंड वासियों को अच्छे मानसून का इंतजार है। अगर इस वर्ष भी वर्षा अच्छी न हुई तो बुंदेलखंड लगातार पांचवे वर्ष भी सूखा ही झेलेगा। लोगों का पलायन होगा औ भूख से मौते होंगी। पिछले मौसमों में लगातार कम बारिश के चलते जमीन के नीचे के जल स्तर में भारी गिरावट आई, नदियों का भी प्रवाह थम सा गया। गर्मी ने इस संकट को और बढ़ाया और हालात भयावहता की ओर है। शहर ही नहीं बुंदेलखंड के सैंकड़ों गांव पानी के संकट से जूझ रहे हैं। पानी के इस संकट के लिए विशेषज्ञ सरकार की नीतियों को ही जिम्मेदार मानते हैं। बुंदेलखंड में जिस तरीके से नदियों का दोहन किया गया और पारंपरिक जल स्रोतों पर तवज्जों नहीं दी गयी। उसकी वजह से बुंदेलखंड में जल संकट पैदा हो गया है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो या नदी और पहाड़ों का खनन की वजह से पर्यावरण संतुलन बुरी तरह गड़बड़ा रहा है। नतीजा यह कि सूरज की तपिश की वजह से आम जनता का जीना हराम हो गया है गर्मी के हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ ध्यान नहीं देती पिछली बार पानी की समस्या से निपटने के लिए साढ़े सात सौ करोड़ बुंदेलखंड को मिले थे। ये रुपया कहां गया किसी को पता नहीं है। इस बार बुंदेलखंड को १२ सौ करोड़ का झुनझुना मिला है लेकिन अगर काम के नाम पर कुछ हो रहा है तो वह सियासत है। समूचे बुंदेलखंड हलक से लेकर खेत तक प्यासा है। जानवरों के चारे का संकट है। तभी तो भूगर्भ जल निदेशालय ने शहर वासियों को पानी से होने वाली परेशानी से चेताया है। रिपोर्ट के अनुसार जल दोहन से बांदा से प्रतिवर्ष भूगर्भ जलस्तर ६५ सेंटीमीटर गिर रहा है जबकि झांसी में ५० सेंटीमीटर गिर रहा है। लखनऊ ५६ तो कानपुर ४५ है।
बुंदेलखंड विन्ध्य पठारी क्षेत्र में स्थित बांदा दक्षिणी पुनिनसुलर क्षेत्र में सेंडीमेंटस शैल समूह के अंतर्गत आता है। प्रदेश में सबसे गहराई वाला जल स्तर क्षेत्र बेतवा और यमुना की घटियों में पाया जाता है। इसमें बांदा चित्रकूट, हमीरपुर जालौन, झांसी सहित इलाहाबाद हैं। बुंदेलखंड में पानी की समस्या नई नहीं है। यहां भूगर्भ है। जल सीमित है क्योंकि धरती के नीचे की बनावट ही ऐसी है कि बहुत बड़ा जल का स्टोर नहीं हो सकता है। स्थिति तब भयावह हो जाती है जब हम लगातार भू गर्भ जल का दोहन करते आ रहे हैें और उसके रिचार्ज की उचित व्यवस्था हमारे पास नहीं है। साथ ही कम होती वर्ष बड़ा संकट है। केन नदी जनवरी में ही सूखने की स्थिति में आ जाती है। गर्मी के पांच महीने जुलाई तक पानी का घोर संकट रहता है। पारंपरिक जलस्रोत सूख जाते हैं। पिछले छह सालों से कम वर्षा बांदा में सूखे काल का प्रमुख कारण है। २००३ से २००९ तक कुल ३७२ दिन बारिश हुई। निरंतर गहराता जलसंकट जन जागरूकता, सामूहिक प्रयासों के अभाव के कारण पैदा हुआ है।
बुंदेलखंड में ज्यादातर क्षेत्र असिंचित होने के कारण बिना बुवाई के रह जाता है। सैंकड़ों लोग प्रदूषित पानी से उपजी बीमारियों के कारण मौत की नींद सो जाते हैं। कुछ क्षेत्र में हाथ, पैर में लकवा, आंखों की अंधता, पथरी, बवासीर, रक्त की कमी, टीवी आदि से ग्रसित रहते हैं। केन नदी को वीभत्स बनाने वाला चाहे करिया नाला हो या मंदाकिनी को प्रदूषित करने वाला सीवर देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदी में कितनी तादाद में जहर प्रतिदिन घुल रहा है। बहरहाल रसूखदार मंत्रियों के ग्रह जनपद से लेकर पूरे बुंदेलखंड में एक दर्जन लाल बत्तियां भले ही अपनी प्यास बुझा रही हों लेकिन गिरते जल स्तर ने बुंदेलखंडवासियों के हलक सूखा दिये हैं। बुंदेलखंड में सरकारी खजाने से जारी हुयी करोड़ों रुपये का इस्तेमाल जलसंचयन, जल प्रबंधन नहरों, तालाबों और कुओं की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था। साथ ही इन सभी स्रातों में बरसात का पानी एकत्र करने की योजना थी मगर न तो पानी एकत्र किया गया। न ही नहरों की तालाबों की सफाई हो सकी। आखिर सरकार का रुपया कौन डकार गया केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक डा. डीएस पाण्डेय साफ कहते हैं कि चित्रकूटधाम मंडल के बांदा जनपद के आठ विकास खंड के चार हमीरपुर के सात में चार महोबा के पांच में तीन व चित्रकूट के पांचों विकास खंडों में जल स्तर एक से तीन मीटर नीचे खिसक गया है। केन बेतवा गठजोड़ से पहले अब भू गर्भ जल स्तर को बचाने की आवश्यकता है।
बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पोखर तालाब और सरोवर जीवन पालक हैं जहां पशुपक्षी ही नहीं आदमी भी अपनी प्यास बुझाता है। बीते दो दशक में अतिक्रमण के चलते तालाबों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप में कमी आई है। पटेल की माने तो डेढ़ करोड़ हजार तालाबों में करीब पांच सौ ही तालाबों में पानी है। सूरज की भीषण तपन से जहां जीव जन्तु बेहाल हैं वहीं जानवर प्यास बुझाने को जंगलों में भटक रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में कुल १५५३ तालाब हैं। जिसमें एक हजार सूख चुके हैं। बानगंगा नदी, कडैली नाला एवं बदरहा नाला के सूखने से पहाड़ों की तलहटों में बसे कुरुह, बरकठा, जरैला, राजाडाडी, खेरियां, महुई, कुलसारी एवं छतैनी गांवों में पेयजल संकट बढ़ा है।
आम तौर पर पथरीले बुंदेलखंड में गर्मी के मौसम में धरती जलती है लेकिन इस साल तो तापमान ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले पारा ५० डिग्री के पार तक पहुंचा और गर्मी ने लोगों को बेहाल कर डाला। बुंदेलखंड में इस साल अप्रैल से ही आसमान ने जहां आग बरसाई वहीं धरती भी तवे की तरह लाल रही। इस साल अभी भी बुंदेलखंड वासियों को अच्छे मानसून का इंतजार है। अगर इस वर्ष भी वर्षा अच्छी न हुई तो बुंदेलखंड लगातार पांचवे वर्ष भी सूखा ही झेलेगा। लोगों का पलायन होगा औ भूख से मौते होंगी। पिछले मौसमों में लगातार कम बारिश के चलते जमीन के नीचे के जल स्तर में भारी गिरावट आई, नदियों का भी प्रवाह थम सा गया। गर्मी ने इस संकट को और बढ़ाया और हालात भयावहता की ओर है। शहर ही नहीं बुंदेलखंड के सैंकड़ों गांव पानी के संकट से जूझ रहे हैं। पानी के इस संकट के लिए विशेषज्ञ सरकार की नीतियों को ही जिम्मेदार मानते हैं। बुंदेलखंड में जिस तरीके से नदियों का दोहन किया गया और पारंपरिक जल स्रोतों पर तवज्जों नहीं दी गयी। उसकी वजह से बुंदेलखंड में जल संकट पैदा हो गया है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो या नदी और पहाड़ों का खनन की वजह से पर्यावरण संतुलन बुरी तरह गड़बड़ा रहा है। नतीजा यह कि सूरज की तपिश की वजह से आम जनता का जीना हराम हो गया है गर्मी के हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं है कि सरकार कुछ ध्यान नहीं देती पिछली बार पानी की समस्या से निपटने के लिए साढ़े सात सौ करोड़ बुंदेलखंड को मिले थे। ये रुपया कहां गया किसी को पता नहीं है। इस बार बुंदेलखंड को १२ सौ करोड़ का झुनझुना मिला है लेकिन अगर काम के नाम पर कुछ हो रहा है तो वह सियासत है। समूचे बुंदेलखंड हलक से लेकर खेत तक प्यासा है। जानवरों के चारे का संकट है। तभी तो भूगर्भ जल निदेशालय ने शहर वासियों को पानी से होने वाली परेशानी से चेताया है। रिपोर्ट के अनुसार जल दोहन से बांदा से प्रतिवर्ष भूगर्भ जलस्तर ६५ सेंटीमीटर गिर रहा है जबकि झांसी में ५० सेंटीमीटर गिर रहा है। लखनऊ ५६ तो कानपुर ४५ है।
बुंदेलखंड विन्ध्य पठारी क्षेत्र में स्थित बांदा दक्षिणी पुनिनसुलर क्षेत्र में सेंडीमेंटस शैल समूह के अंतर्गत आता है। प्रदेश में सबसे गहराई वाला जल स्तर क्षेत्र बेतवा और यमुना की घटियों में पाया जाता है। इसमें बांदा चित्रकूट, हमीरपुर जालौन, झांसी सहित इलाहाबाद हैं। बुंदेलखंड में पानी की समस्या नई नहीं है। यहां भूगर्भ है। जल सीमित है क्योंकि धरती के नीचे की बनावट ही ऐसी है कि बहुत बड़ा जल का स्टोर नहीं हो सकता है। स्थिति तब भयावह हो जाती है जब हम लगातार भू गर्भ जल का दोहन करते आ रहे हैें और उसके रिचार्ज की उचित व्यवस्था हमारे पास नहीं है। साथ ही कम होती वर्ष बड़ा संकट है। केन नदी जनवरी में ही सूखने की स्थिति में आ जाती है। गर्मी के पांच महीने जुलाई तक पानी का घोर संकट रहता है। पारंपरिक जलस्रोत सूख जाते हैं। पिछले छह सालों से कम वर्षा बांदा में सूखे काल का प्रमुख कारण है। २००३ से २००९ तक कुल ३७२ दिन बारिश हुई। निरंतर गहराता जलसंकट जन जागरूकता, सामूहिक प्रयासों के अभाव के कारण पैदा हुआ है।
बुंदेलखंड में ज्यादातर क्षेत्र असिंचित होने के कारण बिना बुवाई के रह जाता है। सैंकड़ों लोग प्रदूषित पानी से उपजी बीमारियों के कारण मौत की नींद सो जाते हैं। कुछ क्षेत्र में हाथ, पैर में लकवा, आंखों की अंधता, पथरी, बवासीर, रक्त की कमी, टीवी आदि से ग्रसित रहते हैं। केन नदी को वीभत्स बनाने वाला चाहे करिया नाला हो या मंदाकिनी को प्रदूषित करने वाला सीवर देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि नदी में कितनी तादाद में जहर प्रतिदिन घुल रहा है। बहरहाल रसूखदार मंत्रियों के ग्रह जनपद से लेकर पूरे बुंदेलखंड में एक दर्जन लाल बत्तियां भले ही अपनी प्यास बुझा रही हों लेकिन गिरते जल स्तर ने बुंदेलखंडवासियों के हलक सूखा दिये हैं। बुंदेलखंड में सरकारी खजाने से जारी हुयी करोड़ों रुपये का इस्तेमाल जलसंचयन, जल प्रबंधन नहरों, तालाबों और कुओं की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था। साथ ही इन सभी स्रातों में बरसात का पानी एकत्र करने की योजना थी मगर न तो पानी एकत्र किया गया। न ही नहरों की तालाबों की सफाई हो सकी। आखिर सरकार का रुपया कौन डकार गया केंद्रीय भूमि जल बोर्ड के वैज्ञानिक डा. डीएस पाण्डेय साफ कहते हैं कि चित्रकूटधाम मंडल के बांदा जनपद के आठ विकास खंड के चार हमीरपुर के सात में चार महोबा के पांच में तीन व चित्रकूट के पांचों विकास खंडों में जल स्तर एक से तीन मीटर नीचे खिसक गया है। केन बेतवा गठजोड़ से पहले अब भू गर्भ जल स्तर को बचाने की आवश्यकता है।
बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पोखर तालाब और सरोवर जीवन पालक हैं जहां पशुपक्षी ही नहीं आदमी भी अपनी प्यास बुझाता है। बीते दो दशक में अतिक्रमण के चलते तालाबों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप में कमी आई है। पटेल की माने तो डेढ़ करोड़ हजार तालाबों में करीब पांच सौ ही तालाबों में पानी है। सूरज की भीषण तपन से जहां जीव जन्तु बेहाल हैं वहीं जानवर प्यास बुझाने को जंगलों में भटक रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में कुल १५५३ तालाब हैं। जिसमें एक हजार सूख चुके हैं। बानगंगा नदी, कडैली नाला एवं बदरहा नाला के सूखने से पहाड़ों की तलहटों में बसे कुरुह, बरकठा, जरैला, राजाडाडी, खेरियां, महुई, कुलसारी एवं छतैनी गांवों में पेयजल संकट बढ़ा है।
उत्साह की लहर दौड़ा गयी क्वींस बेटन
राष्ट्रमंडल खेलों की मशाल क्वींस बेटन नवाबों के शहर लखनऊ में आयी तो पूरे शहर में उत्साह की लहर दौड़ गयी। नन्हें-मुन्ने बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़े तक उसे एक झलक देखने और एक बार उसे छू लेने की लालसा लेकर घंटों सड़क पर उस तरफ टकटकी लगाकर देखते रहे जिस रास्ते से क्वींस बेटन आ रही थी। तमाम देशों के झंडों के बीच लहराते तिरंगे और देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत नारों के साथ स्कूली बच्चे कड़ी धूप के बावजूद घंटों क्वींस बेटन के इंतजार में सड़कों पर खड़े रहे।
क्वींस बेटन को सीतापुर के रास्ते लखनऊ आना था। लखनऊ में उसका पहला स्वागत इटौंजा में होना था। इसी वजह से इटौंजा और लखनऊ के एतिहासिक आसिफी इमामबाड़े के बाहर लोगों का हुजूम जमा था। अपने निर्धारित समय से डेढ़ घंटा देर से इटौंजा पहुंची क्वींस बेटन के स्वागत के उत्साह में कोई कमी नजर नहीं आयी। इमामबाड़े के बाहर सुबह से ही स्वागत की तैयारियां चल रही थीं। इमामबाड़े के पास उसे शाम पांच बजे पहुंचना था। स्वागत की तैयारियां पूरी थीं। स्कूली बच्चे पसीने से लथपथ थे। इसी बीच खबर आयी कि क्वींस बेटन अब सीतापुर से चली है। उसे पहुंचते-पहुंचते तीन-चार घंटे लग जाएंगे। किसी और का इंतजार होता तो शायद लोगों की वापसी शुरू हो जाती लेकिन क्वींस बेटन का मामला था इसलिए स्कूली बच्चों ने अपने कार्यक्रम का रिहर्सल कर दिया। कुछ ही देर के बाद सड़क पर बढ़ती भीड़ को देखकर मुख्य मार्ग को बंद करना पड़ा। रास्ता बंद हो गया तो उत्साह चरम पर आ गया। स्कूली बच्चों ने अपना कार्यक्रम सड़क पर ही शुरू कर दिया। उधर क्वींस बेटन इटौंजा पहुंच चुकी थी। इटौंजा से लेकर बख्शी का तालाब तक सड़क के दोनों ओर लोगों का हुजूम स्वागत के लिए खड़ा हुआ था। क्वींस बेटन अपने लाव लश्कर के साथ आसिफी इमामबाड़े पहुंची तो लखनऊ के मंडलायुक्त, जिलाधिकारी, ओलम्पिक संघ के पदाधिकारी सबके सब मुस्तैद थे। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधि उन ऐतिहासिक पलों को कैद करने के लिए तैयार थे। इधर बादलों की ओट में सूरज छुपा उधर क्वींस बेटन का कारवां टीले वाली मस्जिद की तरफ से आसिफी इमामबाड़े की ओर मुड़ता नजर आया। क्वींस बेटन को देखते ही देशभक्ति से ओतप्रोत नारे वातावरण में गूंजने लगे। देशभक्ति के गीत लाउडस्पीकर पर सुनायी पड़ने लगे। खुली जीप पर चमचमाती क्वींस बेटन हजारों लोगों के बीच से गुजरती कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गयी। महत्वपूर्ण हस्तियों के हाथों में कुछ देर रहने के बाद क्वींस बेटन कानपुर रोड स्थित सिटी मान्टेसरी स्कूल के लिए रवाना हो गयी। सिटी मान्टेसरी स्कूल में स्कूली बच्चों ने क्वींस बेटन के सम्मान में एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक कार्यव्रम प्रस्तुत किए।
अगले दिन क्वींस बेटन एक बार फिर इमामबाड़े के बाहर जा पहुंची। भीड़ इस बार भी खूब थी लेकिन इस बार स्कूली बच्चों से ज्यादा खिलाड़ी नजर आ रहे थे। यह नामवर खिलाड़ी भी स्कूली बच्चों की तरह से क्वींस बेटन को छूने और निहारने को लालायित नजर आ रहे थे। जब क्वींस बेटन जाने-माने खिलाड़ी विजय सिंह चौहान के हाथ में आयी और केडी सिंह बाबू स्टेडियम के लिए रिले दौड़ शुरू हो गयी। एक खिलाड़ी के हाथ से दूसरे खिलाड़ी के हाथों में पहुंचती क्वींस बेटन के डी सिंह बाबू स्टेडियम जा पहुंची। स्टेडियम से उसे उसकी मंजिल की तरफ रवाना कर दिया गया। लखनऊ से रायबरेली होते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की यह मशाल देश की राजधानी दिल्ली के लिए कूच कर गयी।
क्वींस बेटन को सीतापुर के रास्ते लखनऊ आना था। लखनऊ में उसका पहला स्वागत इटौंजा में होना था। इसी वजह से इटौंजा और लखनऊ के एतिहासिक आसिफी इमामबाड़े के बाहर लोगों का हुजूम जमा था। अपने निर्धारित समय से डेढ़ घंटा देर से इटौंजा पहुंची क्वींस बेटन के स्वागत के उत्साह में कोई कमी नजर नहीं आयी। इमामबाड़े के बाहर सुबह से ही स्वागत की तैयारियां चल रही थीं। इमामबाड़े के पास उसे शाम पांच बजे पहुंचना था। स्वागत की तैयारियां पूरी थीं। स्कूली बच्चे पसीने से लथपथ थे। इसी बीच खबर आयी कि क्वींस बेटन अब सीतापुर से चली है। उसे पहुंचते-पहुंचते तीन-चार घंटे लग जाएंगे। किसी और का इंतजार होता तो शायद लोगों की वापसी शुरू हो जाती लेकिन क्वींस बेटन का मामला था इसलिए स्कूली बच्चों ने अपने कार्यक्रम का रिहर्सल कर दिया। कुछ ही देर के बाद सड़क पर बढ़ती भीड़ को देखकर मुख्य मार्ग को बंद करना पड़ा। रास्ता बंद हो गया तो उत्साह चरम पर आ गया। स्कूली बच्चों ने अपना कार्यक्रम सड़क पर ही शुरू कर दिया। उधर क्वींस बेटन इटौंजा पहुंच चुकी थी। इटौंजा से लेकर बख्शी का तालाब तक सड़क के दोनों ओर लोगों का हुजूम स्वागत के लिए खड़ा हुआ था। क्वींस बेटन अपने लाव लश्कर के साथ आसिफी इमामबाड़े पहुंची तो लखनऊ के मंडलायुक्त, जिलाधिकारी, ओलम्पिक संघ के पदाधिकारी सबके सब मुस्तैद थे। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधि उन ऐतिहासिक पलों को कैद करने के लिए तैयार थे। इधर बादलों की ओट में सूरज छुपा उधर क्वींस बेटन का कारवां टीले वाली मस्जिद की तरफ से आसिफी इमामबाड़े की ओर मुड़ता नजर आया। क्वींस बेटन को देखते ही देशभक्ति से ओतप्रोत नारे वातावरण में गूंजने लगे। देशभक्ति के गीत लाउडस्पीकर पर सुनायी पड़ने लगे। खुली जीप पर चमचमाती क्वींस बेटन हजारों लोगों के बीच से गुजरती कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गयी। महत्वपूर्ण हस्तियों के हाथों में कुछ देर रहने के बाद क्वींस बेटन कानपुर रोड स्थित सिटी मान्टेसरी स्कूल के लिए रवाना हो गयी। सिटी मान्टेसरी स्कूल में स्कूली बच्चों ने क्वींस बेटन के सम्मान में एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक कार्यव्रम प्रस्तुत किए।
अगले दिन क्वींस बेटन एक बार फिर इमामबाड़े के बाहर जा पहुंची। भीड़ इस बार भी खूब थी लेकिन इस बार स्कूली बच्चों से ज्यादा खिलाड़ी नजर आ रहे थे। यह नामवर खिलाड़ी भी स्कूली बच्चों की तरह से क्वींस बेटन को छूने और निहारने को लालायित नजर आ रहे थे। जब क्वींस बेटन जाने-माने खिलाड़ी विजय सिंह चौहान के हाथ में आयी और केडी सिंह बाबू स्टेडियम के लिए रिले दौड़ शुरू हो गयी। एक खिलाड़ी के हाथ से दूसरे खिलाड़ी के हाथों में पहुंचती क्वींस बेटन के डी सिंह बाबू स्टेडियम जा पहुंची। स्टेडियम से उसे उसकी मंजिल की तरफ रवाना कर दिया गया। लखनऊ से रायबरेली होते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की यह मशाल देश की राजधानी दिल्ली के लिए कूच कर गयी।
Saturday, July 10, 2010
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