Saturday, May 22, 2010
कोल महिलाओं का दर्द
जंगे आजादी के दौर में गुलामी की जंजीरे काटने और गोरों को हिंदुस्तानी सरहदों के पार खदेड़ने के लिये बुंदेलखंड मेंं चित्रकूट के पाठा के कोलों की दर्द भरी चीखें अब भी सुनाई देती हैं। चिलचिलाती धूप और लू में नंगे बदन श्रीमंतों और सामंतों की जमीन जोतने, हाड़ तोड़ मेहनत करने वाले कोल परिवार यहां के दादुओं और दबंगों के कर्ज में इस कदर डूबे हैं कि इसके बोझ से उबरने के लिए अपनी बहू और बेटियों को जिस्मानी रिश्ते कायम करने की शर्मनाक इजाजत दे देते हैं। ददुआ-ठोकिया जैसे डकैतों से पुलिस ने भले इन्हें निजात दिला दिया हो लेकिन छुटभैये साहूकार, दबंग से लेकर सरकारी हुक्मरान तक के मकड़जाल में ऐसे जकड़े हैं कि इसे तोड़ पाना इनके बस की बात नहीं है। किसी तरह गुजर बसर करने वाले कोल जनजाति के लोग जठराग्नि को बुझाने के लिए घने बीहड़ों से लकड़ी बगैरह काटते या बंधुआ मजदूरी करते हैं। परिवार के भरण पोषण में महिलाएं अधिक हाड़ तोड़ मेहनत करती हैं। घने सुनसान जंगलों से शहद, गोंद, महुआ, चिरौंजी, आंवला, बूटियां बारसिंघा के सींग व जानवरों की खाले संजोकर बेचना इनका काम है। अधिकतर महिलाएं जंगलों से लकड़ियां, शहद, जड़ी बूटियां एकत्र कर रेल से बांदा-सतना-इलाहाबाद-झांसी आदि स्थानों तक पहुंचाती हैं। ये औने पौने लकड़ियां बेचकर अपने परिवार के लिए रोजी रोटी का जुगाड़ करती हैं। यह महिलाएं लकड़ियां एकत्र करती हैं। शहरों में लकड़ी बेचने वाली कोल औरतें अक्सर जीआरपी व आरपीएफ के वर्दीधारी जवानों या सफेदपोश लोगों की कामुकता का शिकार भी हो जाती हैं। वन विभाग का कहर भी इन पर टूटता है। अवैधानिक तरीकों से ये रेल में सफर करती हैं। इसलिए रेल कर्मचारी भी इनका शोषण करते हैं। कोल समुदाय की बालिकाओं को भी कई अनचाहे समझौते करने पड़ते हैं।दबंग दादू से लेकर सरकारी ओहदेदार इनके नाम से सरकारी अनुदान व ऋण हड़पने में कोई देरी नहीं करते। जब कुर्की वारंट आता है तो कोलों को दबंग दादुओं के पैर की जूती को माथे का चंदन बनाना पड़ता है। इतना ही नहीं सरकारी कर्जे से मुक्ति हेतु पहले तो जमीन जायदाद लिखवा ली जाती है फिर बहू बेटियों को भेजने की शर्त रखी जाती है। शुष्क पठारी एवं सूखाग्रस्त इलाका, जहां एशिया की सबसे बड़ी पेयजल योजना सफेद हाथी साबित हुई वहां ' भौरा तोरा पानी गजब कर जाए, गगरी न फूटे चाहे खसम कर जाये' गाने को विवश होती हैं। यहां कोलों की महिलाओं को रखैल के रूप में रखा जाना रिवाज रहा है। जब पुराने जख्म हरे हो जाते हैं तो लोग चीखते हैं, कराहते हैं।
आसान नहीं डगर
तमाम अफवाहों और झंझटों से जूझते हुए अंततः भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उत्तर प्रदेश में सूर्य प्रताप शाही के हाथ में पार्टी की कमान सौंप दी। लगभग मरणासन्न स्थिति में पहुंच चुकी पार्टी को पुर्नर्जीवित करने की अभिलाषा संजोए संगठन के नये सेनापति सूर्य प्रताप शाही की पहचान न तो राष्ट्रीय स्तर पर और न ही प्रदेश के बड़े नेता के तौर पर की जाती है। आज भी उन्हें पूर्वांचल का ही नेता माना जाता है।फिलहाल नयी भूमिका में वे संगठन में कितनी जान फंूक पाते हैं यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि प्रदेश संगठन के अब तक जितने कद्दावर नेता हुए हैं उनका भी बड़ा जनाधार नहीं रहा। हालांकि वे पार्टी में बड़े कद के नेता जरूर माने जाते रहे हैं। चाहे पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह हों या फिर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र अथवा सांसद लालजी टंडन सबका यही हाल है। विनय कटियार और ओम प्रकाश सिंह सबकी सीमायें जगजाहिर हैं। प्रांतीय संगठन में पिछड़ों के नेता होने का दम भरने वाले ओम प्रकाश सिंह भी कुछ खास न कर सके। प्रदेश भाजपा में टांग खींचू राजनीति का यह खेल अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुका है। ऐसे में नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही धुरंधरों एवं बंटे समर्थकों के बीच कैसे सामंजस्य स्थापित कर पाते हैं यह एक यक्ष प्रश्न है। इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश भाजपा का ग्राफ २००२ से लगातार गिरता जा रहा है। इस दौरान पार्टी अपना खोया जनाधार पाने के लिए कई प्रयोग कर चुकी है। विनय कटियार से लेकर रमापति राम त्रिपाठी तक को कमान सौंपी जा चुकी है। अब तक आजमाये गये नुस्खों से पार्टी की सेहत ठीक होना तो दूर की बात उसमें सुधार के लक्षण भी नजर नहीं आ रहे हैं। इन नुस्खों का परिणाम यह जरूर देखने को मिला कि पार्टी प्रदेश में दूसरे नंबर से खिसक कर चौथे नंबर पर पहुंच गई है। अब ऐसी विषम परिस्थिति में सूर्य प्रताप शाही किस हद तक और कैसे सफल हो पाते हैं, यह ज्वलंत प्रश्न है। प्रदेश भाजपा के नये सेनापति की अब तक की राजनैतिक क्षमता, योग्यता एवं उनके अतीत को जानना कम दिलचस्प नहीं होगा। प्रदेश भाजपा में ऊपर से लेकर नीचे तक व्याप्त तमाम तरह की विकृतियों को यदि एक तरफ कर दिया जाए और नवनियुक्त अध्यक्ष से चमत्कार की उम्मीद की जाए तो यह बेमानी होगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के ग्राम पकहाँ, थाना पथरदेवाँ (वर्तमान थाना बघऊच घाट) के मूल निवासी सूर्य प्रताप शाही ने १९८० से २००७ नौ चुनावी महासमर में ताल ठोंकी है। जिसमें से मात्र तीन बार ही जीते, ६ बार उन्हें करारी शिकस्त का स्वाद चखना पड़ा। आर.एस.एस. से संबंध रखने वाले सूर्य प्रताप शाही अपने जीवन में पहली बार कसया विधानसभा से १९८० में जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़े। तब इन्हें कुल २००० मत ही प्राप्त हो सके। १९८५ के चुनाव में इसी विधानसभा सीट पर उन्होंने अपने निकटतम निर्दल राजनैतिक प्रतिद्वंदी ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को २५० मतों से पराजित किया था। जबकि १९८९ के आम चुनाव में इसी सीट पर जनता दल के प्रत्याशी ब्रह्माशंकर त्रिपाठी ने लगभग बारह हजार मतों से उन्हें हराया। दो वर्ष बाद हुए चुनाव में राम लहर के कारण शाही ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को पराजित करने में कामयाब हुए। जबकि १९९३ के चुनाव में ब्रह्माशंकर त्रिपाठी ने लगभग पंद्रह हजार मतों से शाही को पराजित किया। आखिरी बार १९९६ में उन्हें मिली। २००२ एवं २००७ में ब्रह्माशंकर त्रिपाठी ने उन्हें हराया। १९९१ में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे भाजपा के इस महारथी को प्रदेश सरकार में पहली बार गृह राज्यमंत्री तथा स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। १९९६ में वे आबकारी मंत्री भी बने। शाही के मंत्री पद का दोनों कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। बतौर गृह राज्यमंत्री उनका कार्यकाल इत्िाहास के काले पन्नों में दर्ज है। उनके इस कार्यकाल में ही बहुचर्चित पथरदेवाँ बलात्कार कांड की गूंज लोकसभा से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गूंजी। अब ऐसे में यह स्वतः विचारणीय हो जाता है कि सूर्य प्रताप शाही मृत पड़ी प्रदेश भाजपा में जान फूंकने का कार्य कैसे करेंगे। भाजपा की पूर्वांचल की राजनीति भी उनके लिए निष्कंटक नहीं है। यहां उन्हें गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्य नाथ से जूझना होगा। योगी शुरू से ही उन्हें प्रदेश भाजपा की कमान सौंपे जाने के खिलाफ थे। ऐसे में वह सूर्य प्रताप शाही का किस हद तक और कितना साथ देंगे यह देखना दिलचस्प रहेगा। योगी आदित्य नाथ के प्रकोप से पूर्वांचल में भाजपा के वरिष्ठ नेता शिव प्रताप शुक्ल आज तक नहीं उतर सके हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वे घटक उनका कितना साथ देंगे जो इस बार अपना प्रतिनिधि बतौर प्रदेश अध्यक्ष चाहते थे। वैसे सूर्य प्रताप शाही ने एक काम अच्छा किया। वे सड़क मार्ग से लोगों से मिलते जुलते हुए लखनऊ पहुंचे। उनकी निगाह ट्विटर जैसे आधुनिक संचार माध्यमों पर भी हैं। वैसे यहां उनकी मौजूदगी पर पार्टी का एक वर्ग नाराज भी है।
Thursday, May 20, 2010
अपमानित करनें का अभियान चल रहा
बसपा मंत्रियों के संरक्षण में प्रकाशित होने वाली अंबेडकर टुडे पत्रिका के मई अंक में हिन्दुओं खासकर सवर्णों को बुरी तरह से अपमानित करनें का अभियान चल रहा है। इसका प्रत्यक्ष नजारा देखना हो तो अम्बेडकर टुडे पत्रिका का मई २०१० का ताजा अंक देखिए जिसके संरक्षकों में मायावती मंत्रिमण्डल के चार चार वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों के नाम शामिल हैं। इस पत्रिका के मई २०१० अंक का दावा है कि हिन्दू धर्म मानव मूल्यों पर कलंक है, त्याज्य धर्म है, वेद जंगली विधान है, पिशाच सिद्धान्त है, हिन्दू धर्म ग्रन्थ धर्म शास्त्र धर्म शास्त्र धार्मिक आतंक है, हिन्दू धर्म व्यवस्था का जेलखाना है, रामायण धार्मिक चिन्तन की जहरीली पोथी है, और सृष्टिकर्ता (ब्रह्या) बेटी(कन्यागामी) हैं तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दलितों के दुश्मन हैं।उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित जौनपुर जिला मुख्यालय से मात्र तीनचार किलोमीटर की दूरी पर स्थित भगौतीपुर (शीतला माता मंदिर धाम चौकियाँ) से एक मासिक पत्रिका अम्बेडकर टुडे प्रकाशित होती है जिसके मुद्रक प्रकाशक एवं सम्पादक हैं कोई डाक्टर राजीव रत्न। डॉ० राजीव रत्न के सम्पादन में प्रकाशित होनें वाली मासिक पत्रिका का बहुत मजबूत दावा है कि उसे बहुजन समाज पार्टी के संगठन से लेकर बसपा सरकार तक का भरपूर संरक्षण प्राप्त है और यह पत्रिका बहुजन समाज पार्टी के वैचारिक पक्ष को इस देश प्रदेश के आम आदमी के सामनें लानें के लिए ही एक सोची समझी रणनीति के तहत प्रकाशित हो रही है। यही कारण है कि इस पत्रिका के सम्पादक डॉ० राजीव रत्न अपनी इस पत्रिका के विशेष संरक्षकों में मायावती मंत्रिमण्डल के पांच वरिष्ठ मंत्रियों क्रमशः स्वामी प्रसाद मौर्य (प्रदेश बसपा के अध्यक्ष भी हैं।), बाबू सिंह कुशवाहा, पारसनाथ मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दकी, एवं दद्दू प्रसाद का नाम बहुत ही गर्व के साथ घोषित करते हैं। पत्रिका का तो यहाँ तक दावा है कि पत्रिका का प्रकाशन व्यवसायिक न होकर पूर्ण रूप से बहुजन आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर जनजन तक पहुँचानें एवं बुद्ध के विचारों के प्रचारप्रसार के लिए किया जा रहा है। बसपाई मिशन में जीजान होनें से जुटी इस पत्रिका के मई २०१० के पृष्ठ संख्या ४४ से पृष्ठ संख्या ५५ (कुल १२ पेज) तक एक विस्तृत लेख धर्म के नाम पर शोषण का धंधा वेदों में अन्ध विश्वास शीर्षक से प्रकाशित किया गया है। इस लेख के लेखक कौशाम्बी जनपद के कोई बड़े लाल मौर्य हैं। लेखक बड़ेलाल मार्य नें वेदों में मुख्यतः अथर्व वेद, ऋग्वेद, यजुर्वेद के अनेकोनेक श्लोकों का कुछ इस तरह से पास्टमार्टम किया है कि यदि आज भगवान वेद व्यास होते और विद्वान लेखक की विद्वता को देखते तो शायद वे भी चकरा जाते।लेखक का कथन है कि देवराज इन्द्र बैल का मांस खाते थे (पृष्ठ संख्या ५३)। पृष्ठ संख्या ५३ पर ही दिया गया है कि वैदिक काल में देवताओं और अतिथियों को तो गो मांस से ही तृप्त किया जाता था। पृष्ठ संख्या५४ पर विद्वान लेखक का कथन प्रकाशित है कि वेदों के अध्ययन से कहीं भी गंभीर चिन्तन, दर्शन और धर्म की व्याख्या प्रतीत नहीं होती। ऋग्वेद संहिता में कहीं से ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि यह देववाणी है, बल्कि इसके अध्ययन से पता चलता है कि यह पूरी शैतानी पोथियाँ हैं। आगे कहा गया है कि वेदों में सुन्दरी और सुरा का भरपूर बखान है, जो भोग और उपभोग की सामग्री है। पत्रिका के इसी अंक के पृष्ठ संख्या ३१ पर मुरैना मध्यप्रदेश के किसी आश्विनी कुमार शाक्य द्वारा हिन्दुओं खाशकर सवर्णों की अस्मिता, मानबिन्दुओं, हिन्दू मंदिरों, हिन्दू धर्म, वेद, उपनिषद, हिन्दू धर्म ग्रन्थ, रामायण, ईश्वर, ३३ करोड़ देवता, सृष्टिकर्ता ब्रह्या, वैदिक युग, ब्राह्यण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, को निम्न कोटि की भाषा शैली में गालियाँ देते हुए किस तरह लांक्षित एवं अपमानित किया गया है इसके लिए देखें पत्रिका में प्रकाशित बॉक्स की पठनीय सामग्री।उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार द्वारा पालित एवं वित्तीय रूप से पोषित अम्बेडकर टुडे पत्रिका के इस भड़काऊ लेख नें प्रदेश में सवर्ण बनाम अवर्ण के बीच भीषण टकराव का बीजारोपड़ तो निश्चित रूप से कर ही दिया है। पत्रिका के इस लेख पर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मात्र अस्सी किलोमीटर दूर रायबरेली में १४ मई को अनेक हिन्दू संगठनों नें कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए पत्रिका की होली जलाई जिस पर जिला प्रशासन नें पूरे इलाके को पुलिस छावनी के रूप में तब्दील कर दिया था। रायबरेली में स्थिति पर काबू तो पा लिया गया है पर यदि इसकी लपटें रायबरेली की सीमा से दूर निकली तो इस पर आसानी से काबू पाना मुश्किल होगा।फिलहाल इस घटना की जानकारी के बाद उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कार्रवाई करते हुए न केवल अंबेडकर टुडे पत्रिका को जब्त करने का आदेश दिया है बल्कि इस पूरे मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराने का फैसला किया है। साथ ही पत्रिका के संपादक ने भी पत्रिका में छपे लेख को लेकर माफी मांगी है। मायावती प्रशासन द्वारा खबर प्रकाशित होने के बाद देर रात मुख्यमंत्री सचिवालय में एक आपात बैठक बुलाई गयी जिसमें अंबेडकर टुडे के संपादक डॉ राजीव रत्न को भी तलब किया गया। उनसे लिखित रूप में यह आश्वासन लिया गया कि वे अपनी पत्रिका में जिन पांच मंत्रियों का नाम प्रकाशित कर रहे हैं उसके लिए उनके पास कोई सहमति नहीं है। उनसे लिखित आश्वासन लेने के बाद सरकार ने जौनपुर डीएम को आदेश जारी किया कि वे पत्रिका का रजिस्ट्रेशन निरस्त करने की कार्रवाई सुनिश्चित करें। साथ ही सरकार ने आदेश जारी किया है कि इस पत्रिका की समस्त प्रतियों को जब्त कर लिया जाए। इसके साथ ही तत्काल निर्णय लिया गया कि इस पूरे मामले की सीबीसीआईडी से जांच करवाई जाएगी।इसके बाद १९ मई को सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अंबेडकर टुडे पत्रिका के मई २०१० के अंक में धर्म विशेष के बारे में अशोभनीय, अमर्यादित एवं आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन के मामले को गंभीरता से लेते हुए सीबीसीआईडी से जांच के आदेश दिये हैं ताकि इस लेख के माध्यम से सामाजिक सौहार्द को ठेस पहुंचाने की साजिश का पर्दाफाश हो सके।
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