भ्रष्टाचार जैसे अति-महत्वपूर्ण मुद्दे पर देश की निगाहें दिल्ली के
रामलीला मैदान पर जमीं हुई हैं. जनता में पिछले चौसठ सालों का जमा गुस्सा
राष्ट्रीय राजमार्गों पर 'जन-लोकपाल' के मांग के रूप में फूट पड़ा है.
राजनितिक दलों को सांप सूंघ गया है. कुछ सामने आ भी रहे हैं तो बाद में
अपने कथन को व्यक्तिगत विचार का नाम देकर 'निकास-दाँव' मार रहे हैं. देश
में जबरदस्त गतिरोध बना हुआ है. कथित 'रिमोट' सोनिया जी अपनी 'तथाकथित'
बीमारी के चलते विदेश में हैं.क्या पता, सोनिया ने ... अपने 'विदेशी-मूल'
को सुरक्षित बचा जाने के लिए यह कदम उठाया हो, ताजा-ताजा किसान नेता बने
राहुल गाँधी इस समय कहाँ हैं? बिना कलफ किया कुरता पहने, हल्की दाढ़ी
बढ़ाए, गाँव के झुग्गी-झोपड़ियों और 'बसपा पीड़ित किसानों' के लिए दिल में
दर्द लिए, राजनीतिज्ञ, फिलवक्त कहाँ मशरूफ हैं? अप्रैल माह में ही
भ्रष्टाचार और काले-धन मुद्दे पर टीम-अन्ना और बाबा रामदेव द्वारा हमला
बोले जाने का आगाज़ हो गया था, लेकिन उस समय राहुल मिशन-यूपी-२०१२ की
कामयाबी के लिए किसानों के साथ पंचायत करने में मशगूल थे. कुछ चाटुकार
कांग्रेसियों ने राहुल गाँधी को 'भविष्य का प्रधानमंत्री' मान लिया है. तो
क्या, भावी प्रधानमंत्री को ऐसे संक्रमण काल में भी चुप्पी साधे रहना
चाहिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस के रणनीतिकार, राहुल गाँधी जैसे तुरुप
के पत्ते को अभी मैदान में उतरना ही नहीं चाहते? ... फिर युवराज की खामोशी
का क्या मतलब निकाला जाय? जो भी हो,लेकिन इस चुप्पी में कोई न कोई रहस्य
जरुर हैं.
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