पंद्रह अगस्त १९४७ को जब सारा देश आजादी के जश्न में डूबा था। वहीं राष्ट्रपति महात्मा गांधी चिंतन में थे। शायद उनकी चिंता भविष्य की थी। आखिर भारतीयों द्वारा राजकाज संभालने के बाद लोक तंत्र को कैसे अक्षुण्य बनाए रखा जा सकेगा।
आजादी का पहला दिन १५ अगस्त मगर आजादी मिली १४ अगस्त की मध्यरात्रि। आखिर ऐसा क्या था कि हमने आधी रात को सत्ता संभाली? सवाल यह भी है क्या महात्मा गांधी के उद्देश्य पूर्ण हुए हैं? वह भूदान ग्रामदान क्या निर्धनों ने स्वतंत्रता का अर्थ समझा? क्या गांधी, विनोबा, जयप्रकाश नारायण ने आम आदमी को जिस तरह आजादी के मर्म समझाए इसका भारतीय और प्रांतीय शासकों ने पालन किया? क्या राष्ट्रभाषा प्रचार समिति राष्ट्रभाषाओं के विभिन्न विद्यालय वास्तव में चलने दिए? क्या बेरोजगारों को भारतीय स्वतंत्रता का अर्थ समझने दिया गया? क्या खादी ग्रामोद्योग बोर्ड ईमानदारी से चल पाया? क्या स्वतंत्रता के पश्चात तमाम ग्रामीण ग्रामों के मोहताज नहीं हो गए?
पराधीनता के समय अंग्रेजों ने जिस तरह भारतीयों को गुलाम बनाया था ठीक वैसे ही पंद्रह अगस्त १९४७ उपरांत भी भारतीय वैसे ही गुलाम बने हुए हैं? महात्मा गांधी ने कहा था भारत की आत्मा गांव में बसती है पर आज आधी शताब्दी पश्चात लगता है भारत नेताओं अभिनेत्रियों, व्यापारियों करोड़पतियों, शेयर होल्डरों विदेशियों के मध्य भारतीय आत्मा रहती है। लाखों करोड़ों लोग अंग्रेजो के जमाने में भी निर्धन थे। स्तंत्रता दिवस के नाम पर भी निर्धन हैं। भारत के नेता आपातकाल के बाद अपने आपको वायसराय मानने लगे थे। अगर ऐसा नहीं होता तो क्या सत्ता पर वर्षों तक काबिज नेता सत्ता सुख भोग सकते थे। हमें मालूम है नेहरू, इंदिरा राजीव परिवार ने जनतंत्र को राजतंत्र स्थापति कर दिया। स्वतंत्रता/ जनतंत्र/ भारतीय नागारिकता/ मानवाधिकार/ राजनीतिक दल/ संविधान भारतीय सभ्यता/ भाषा/ धर्म/ मेल मिलाप सब कुछ विदेशी सभ्यता अनुसार ही मान्य है?
अगर वास्तव में ईमानदारी से भारतीयता का जनतंत्र स्थापित होता तो आज का भारत दूसरे ही रूप का होता।
महात्मा गांधी ने भारत को आजादी की व्यवस्था भी नई तरीकों से करने को कहा था। गांधी जी ने राज नेताओं को तपस्वी त्यागी बनने को भी कहा था पर सुख भोगी नेताओं ने स्वतः गांधीजी को ठुकरा दिया। अब सवाल यह है जब भारतीय नवपीढ़ी को वास्तविक स्वतंत्रता का अर्थ ही नहीं जानने दिया। हर नागरिक को राष्ट्र का अर्थ नहीं समझाने दिया। हर किसी को इसका अनुशासन नहीं समझाया। प्रत्येक को पालन नहीं करने दिया और दुनिया से भारत को प्रथक पहचान बनने ही नहीं दी तब भारतीय स्वतंत्रता का अर्थ क्या होगा? तब क्या हम अपने देश में स्वतंत्र नागरिक नहीं है? या सत्ता भोगी राजतंत्री है? अब तो स्थिति यह है की भारतीय सत्ता भोगी विपक्ष को दुश्मन मानती है। कोई भी चुनाव बाद परस्पर प्रेम मिलाप से राष्ट्र को नहीं चलने देता? फिर कैसे कह सकते हैं की भारत की आम जनता अपने ही देश मैं आजाद हैं
Accha laga, Kya aap "Graam Daan" ke bare me Jaankari de sakte he.
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